डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 68 – दोहे
सभी दलों के प्रवक्ता, शेखी रहे बघार।
उनकी मुद्रा कह रही, दिल्ली में दमदार।।
0
हाय, पटकनी खा गए, बहे धार ही धार।
किया आत्मविश्वास ने, ऐसा बंटाधार।।
0
नारे लगे विरोध में, किए रास्ते जाम।
लेन-देन पक्का हुआ, मिलजुल बैठे श्याम।।
0
राजनीति की चाल को, समझ ना पाए आप।
बेटा भी कहने लगा, हमीं तुम्हारे बाप।।
0
मूर्ति लगाई इन्होंने, चढ़े गले में हार
वाह चढ़ावे आ गए, करने को मिस्मार।।
0
शुद्ध हरामी रहे थे और बहुत बदनाम।।
दल बदला तो हो गए, पावन सीताराम।।
0
अच्छे दिन आए नहीं, शुरू बुरे का दौर।
कुआ खाई के बीच में, नहीं ठिकाना ठौर ।।
0
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
शानदार