श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “डरें नहीं झंझावातों से… । अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 11 – डरें नहीं झंझावातों से…  ☆ 

समांत-अम

पदांत-हैं

मात्राभार- १६

 

जीवन में जब आते गम हैं।

आँखें सबकी होती नम हैं।।

 

कलयुग की लीला यह देखो,

आँखों में अब कहाँ शरम हैं।

 

डरें नहीं झंझावातों से,

पाएँ मंजिल यही धरम हैं।

 

तूफानों में किश्ती खेते,

पार लगाते उनका श्रम हैं।

 

मेहनत कश भूखा है सोता,

सरकारों को अब भी भ्रम हैं।

 

वृद्ध मात-पिता हैं हो गए,

फिर भी काया में दमखम हैं।

 

कर्तव्यों को कौन पूँछता,

अधिकारों पर चली कलम हैं।

 

तन में भगवा चोला ओढ़ा,

धर्म-ज्ञान का उन्हें वहम हैं।

 

सबको जो हैं मूर्ख समझते,

उन में ही तो बुद्धि कम हैं।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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