श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “सच्ची नियत”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 81 ☆ सच्ची नियत 

जब किसी राह पर चलो तो कांटे और  नुकीले पत्थर मिलेंगे ही बस उन्हें हटाते हुए बढ़ना होगा,  क्या यहाँ पर नजरअंदाज करके बढ़ना  ज्यादा सही रहेगा  या जड़ से मिटाते हुए चलें जिससे दूसरों को उन बाधाओं से न गुजरना पड़े। रिश्तों में दरार डालना कोई कठिन कार्य नहीं होता है। भले ही कुछ प्रहारों का असर न दिखाई दे किन्तु कोई भी वार कभी खाली नहीं जाता है। कहीं न कहीं आंशिक ही सही दरार बनती जरूर है जो आगे चलकर विस्फोटक स्थिति उत्पन्न करती है।

लक्ष्य को छोड़कर बिना मतलब के कार्यों में अपनी ऊर्जा बर्बाद करना कहाँ तक सही कहा जा सकता है। खैर गाहे – बगाहे परेशानी आती ही रहती है। ऐसा ही कुछ हमारे मन्नूलाल जी के साथ हमेशा से हो रहा है। शिकायतों की पोटली लिए इधर से उधर भटकते रहते हैं जैसे ही कोई दिखा; झट से उसे पकड़ पहले इधर – उधर की बातें कीं फिर अपनी पोटली खोलते हुए दुनिया भर की समस्याओं को बिखरा दिया। इधर अनोखेलाल जी तो अपनी अनोखी हरकतों के द्वारा कभी किसी को हटाना, किसी को बसाना बस यही करते हुए अपना राग अलाप रहे थे। इस सब के बीच में जो सही था, वो ये कि हर व्यक्ति अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था। कहते हैं जो चलेगा, कुछ करेगा वो अवश्य जीतेगा। और जब जीतेगा तो पार्टी तो होगी ही। बस ऐसी ही पार्टियाँ आए दिन होती रहतीं।

हर पार्टी में कोई न कोई आकर्षण का केंद्र अवश्य होता था जिसके इर्द गिर्द बातचीत घूमने लगती और तब तक घूमती जब तक नया मुद्दा न मिल जाए। खोने – पाने का खेल चलता ही रहता। मन्नूलाल जी रिकार्ड्स बनाने के बहुत शौकीन थे। कोई न कोई विषय पर खोजबीन करना, उसे पढ़ना और जुट जाना शिखर पर पहुँचने की ओर। इधर खबरी लाल भी उन्हें सारी जानकारी प्रदान करते जा रहे थे। अब तो ताबड़तोड़ उपलब्धियों की बरसात हो रही थी। लगातार लोगों द्वारा मदद भी मिलने लगी। जब कोई सफल होने लगता है तो सारा हुजूम उसके पीछे चलते हुए उसका साथ देना चाहता है।

एक के बाद एक बड़े कार्य होते जा रहे हैं ऐसा लगता है मानो सब कुछ खुली आँखों द्वारा देखा गया सपना ही तो है। सपने सच होते हैं उनके, जो परिश्रम करना जानते हैं, जो सबको साथ लेकर, सच्ची नियत के मालिक होते हैं।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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