श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण एवं विचारणीय रचना “दुनिया को तुम क्या नया दोगे…. ”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 101 ☆
☆ दुनिया को तुम क्या नया दोगे…. ☆
वहशी, नफरत, हवस, नशा दोगे
अपनी नस्लों को और क्या दोगे
मुहब्बतें रात भर सिसकती रहीं
वफ़ा का क्या यही सिला दोगे
हाथ मसीहों के लिप्त हैं नशे में
तुम समाज को क्या दिशा दोगे
दौलत की रंग-ए-महफ़िल यहाँ
क्या नशे में डूबे युवा दोगे
खुद को भूले नशे की झोंक में
दुनिया को तुम क्या नया दोगे
कौन लाएगा इन्हें होश में
“संतोष” लत की क्या दवा दोगे
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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