डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 112 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
थर थर वो तो कांपती, बड़ी ठंड है यार।
गले लगा लो तुम इसे, कर लो इससे प्यार।।
मार्गशीर्ष की सुबह तो, गाती शीतल गीत।
मिल बैठो तुम संग तो, बन जाओ मनमीत।।
ठंड जरा बढ़ने लगी, आया कंबल याद।
जाड़े में करने लगे, गरमी की फरियाद।।
ठंड ठंड अब मत कहो, लो इसका आनंद।
खुश होकर दिन काटते, लिखते प्यारे छंद।।
ठिठुर ठिठुर कर रह गया, दे दी उसने जान।
हिम की चादर ने उसे, दिया कफन का मान।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈