श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# लोग कुछ तो कहेंगे #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 60 ☆
☆ # बेटा # ☆
किसी दंपत्ति को जब
पुत्र की प्राप्ति होती है
उनके जीवन में
खुशियों कीं बहार
आती हैं
वें फूले नहीं समाते हैं
कितना मुस्कुराते हैं
बांटते हैं मिठाइयां
लोगों की लेते है बधाईयां
गद् गद् हो जातें हैं
सुंदर सपनों में
खो जातें हैं
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा
स्तूप, गुरूद्वारों में
माथा टेकते हैं
गरीबों को दान देकर
उनमें ईश्वर खोजते है
उसे बड़े जतन से पालते हैं
उसे बड़े यतन से संभालते हैं
माता पिता निहाल हो जाते हैं
पुत्र रत्न पाकर
मालामाल हो जाते हैं
उन्हें लगता है कि
हमारा पुत्र वैतरणी पार करायेगा
अंतिम क्षण मोक्ष दिलायेगा
जब जीवन चक्र तरूणाई से
वृद्धावस्था में जाता है
गुजरा जमाना बहुत
याद आता है
तब सब साथ छोड़ जाते हैं
बुलाने पर भी
वापस नहीं आते है
जब अपना ही अपने से
रूठता है
सारा भ्रम अचानक टूटता है
संतानें निगाहें फेर लेती
बीमारियां घेर लेती हैं
हर लम्हा टूटती हुई सांस है
हर पल बस एकांतवास है
जब प्राणों से प्यारा पुत्र
साथ छोड़ देता है
वो रिश्ता नाता
तोड़ देता है
पत्नी और बच्चे
बस उसका संसार है
मां-बाप के लिए
कहां बचा प्यार है
तब ममता चीख कर
पूछती है?
उसे कुछ नहीं सूझती है ?
तू नहीं तो कौन सहारा बनेगा ?
मेरे दूध का कर्ज
कैसे उतारेगा ?
बड़ी मिन्नतों के बाद
तू मुझे मिला है
मेरी ममता का
क्या यही सिला है ?
वृद्ध मां-बाप कहते हैं
किससे शिकायत करें
जब अपना ही सिक्का
खोटा है
बहू तो पराई है,
पर तू तो मेरा खून
मेरे जिगर का टुकड़ा
मेरा बेटा है /
© श्याम खापर्डे
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