श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “युग युगांतर से पले संस्कार को… । अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 13 – युग युगांतर से पले संस्कार को…  ☆ 

समांत-ईत

पदांत- हैं

मात्राभार- 19

 

सब बिछुड़ते जा रहे मनमीत हैं।

चल रही अब आंँधियांँ विपरीत हैं।।

 

बैठकर खुशियांँ मनाते थे कभी,

आँगनों में खिच रहीं अब भीत हैं।

 

है समय बदला हुआ यह चल रहा,

धर्म और ईमान सब विक्रीत हैं।

 

युग युगांतर से पले संस्कार को,

नेह-रिश्तों में मिले नवनीत हैं।

 

खींच दीं लक्ष्मण रेखा द्वारों में,

पार करने पर हुए मुख-पीत हैं।

 

चुनावों की फिर गदर है मच रही,

शांति प्रिय ही लोग फिर भयभीत हैं।

 

देश के निर्माण में हैं जो लगे,

उनको संबल दें तभी सुनीत हैं।

 

मिल रही हैं धमकियां उस पार से,

फिर भी अपने भाव सब पुनीत हैं।

 

है बदलती जा रही तस्वीर अब,

विश्व में सारे हमारे मीत हैं।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

14 जून 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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रश्मि लहर

बहुत सुंदर सृजन