श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं नव वर्ष पर एक भावप्रवण पूर्णिका “साल नया अब निखर रहा है…. ”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 102 ☆
☆ साल नया अब निखर रहा है…. ☆
बूढ़ा दिसंबर गुजर रहा है
साल नया अब निखर रहा है
जवां जनवरी जोश में आई
मौसम देखो संवर रहा है
उम्र की माला का इक मोती
नये साल में झर रहा है
कुछ खोया कुछ पाया हमने
जीवन ऐसे उतर रहा है
गुनगुनाती है धूप सुहानी
तन कंप कंप यूँ ठिठुर रहा है
बिरहन पिय की राह ताकती
एक आस नव सहर रहा है
जोश होश “संतोष” रहेगा
वर्ष बाइसवां बिखर रहा है
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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