डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 113 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
स्वेटर
माँ ने स्वेटर में बुना, माँ का प्यारा प्यार।
याद दिलाता यह हमें ,माँ का प्यार दुलार।।
अँगीठी
देखो कितनी ठंड है, जली अँगीठी द्वार।
मिलजुल कर सब तापते,खुश होता परिवार।।
रजाई
ठंड -ठंड हम कर रहे, नहीं रजाई पास।
तापें जला अलाव तब, आ जाती है सांस।।
शाल
प्रियतम जब भी ओढ़ता,मीत प्रीति का शाल।
सर्दी में गरमी मिले, जीवन भर हर हाल ।।
कंबल
कंबल वो तो बाँटते,करें पुण्य का काम।
मिल जाए वैकुंठ का,आशीषों से धाम।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈