डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक अत्यंत विचारणीय  एवं सार्थक आलेख “लोक एवं निजी संपत्ति के नुकसान पर अंकुश।)

☆ किसलय की कलम से # 65 ☆

☆ लोक एवं निजी संपत्ति के नुकसान पर अंकुश ☆

अपना हक लेना यह सब का अधिकार है। हमें व्यक्तिगत रूप में और सामूहिक रूप में सरकार तथा निजी संस्थानों से हक प्राप्त करने की कानूनी पात्रता है।  कानून, पद, योग्यता, पैतृक संपत्ति हस्तांतरण आदि के आधार पर प्राप्त शक्ति अथवा अधिकार से हमें कोई वंचित नहीं कर सकता। युगों-युगों से मानव अधिकार के लिए लड़ता आया है। हक की ही लड़ाई पांडवों ने लड़ी थी। यही कारण है कि आज भी समाज में न्यायालयों का सम्मान किया जाता है।

एक समय था जब धरने, हड़तालें, अनशन, प्रदर्शन, आंदोलन अथवा विरोध बड़ी शांति पूर्वक किए जाते थे। पहले लोगों के व्यक्तिगत, शासकीय अथवा निजी मामले आपसी वार्तालाप, मोहल्ले, पंचायतों अथवा न्यायालयों के माध्यम से निपट जाया करते थे। लोग इन पर विश्वास भी करते थे, लेकिन धीरे-धीरे शिक्षा, स्वतंत्रता, मूल अधिकारों के गलत प्रयोग, राजनैतिक वर्चस्व के चलते हक और अधिकारों की लड़ाई में निजी तथा शासकीय संपत्तियों को क्षति पहुँचाने, तोड़फोड़ करने, इमारतों, वाहनों, कार्यालयों में आग लगा देने जैसी घटनाओं को लोग अंजाम  देने लगे। स्वार्थवश, संप्रदाय, स्थानीय, प्रदेशीय, देशीय, धार्मिक अथवा अन्य घोषित माँगों के लिए भी अधिकारों व स्वतंत्रता का हवाला देकर ये विरोध, प्रदर्शन, आंदोलन आदि होने लगे। इनके नारे भी जोशीले हुआ करते हैं-

‘चाहे जो मजबूरी हो, माँग हमारी पूरी हो’

‘तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी’ अथवा ‘जो हमसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा”

इन परिस्थितियों में भीड़ का फायदा उठाकर, आक्रोश अथवा जोश में आकर आंदोलनकारी असंवैधानिक तरीके से तोड़-फोड़ व आगजनी भी करने लगे। हत्याएँ,  दुर्घटनाएँ, गोली चालन जैसी वारदातें होने लगीं, जो निश्चित रूप से हक या अधिकार की लड़ाई में कदापि उचित नहीं है। जब अधिकार माँगने वाला या अधिकार देने वाला ही दुनिया में नहीं रहेगा तो, ऐसे आंदोलनों अथवा प्रदर्शनों का कोई औचित्य नहीं है।

निसंदेह स्वतंत्रता के पश्चात हमें अपना देश और अधिकार की सौगात मिली है। इसका लाभ भी सभी को मिला है, लेकिन इन कृत्यों से हुई अकूत सरकारी क्षति क्या निंदनीय नहीं है? हमारे ही पैसों से बनी संपत्ति को हम ही नष्ट करें, यह कितनी दुःखद बात है। सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन चाहे जब लाखों-करोड़ों की संपत्ति नष्ट होते रहना तो सबके लिए कष्टप्रद होगी ही।

देर आयद, दुरुस्त आयद कहावत को चरितार्थ करते हुए भला हो उन कानूनविदों और  कुछ सरकारी नुमाइंदों का, जिनकी सक्रियता से हम ऐसे नुकसान की रोक-थाम हेतु ऐसा सकारात्मक कदम आगे बढ़ा पाए। इसे अभी हम शुरुआत ही मानें क्योंकि देश में हमारे मध्यप्रदेश को मिलाकर अभी मात्र छह ही ऐसे राज्य हैं जिन्होंने इन असंवैधानिक कार्यों के विरुद्ध यह विधेयक बनाया है। इस विधेयक के अन्य प्रदेशों में सुखद परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। मध्यप्रदेश की विधानसभा ने दिसंबर 2021 में इस विधेयक को पारित कर दिया है, जो ‘मध्यप्रदेश लोक एवं निजी संपत्ति को नुकसान का निवारण व नुकसानी की वसूली विधेयक 2021’ के नाम से जाना जाएगा।

इस कानून के अंतर्गत धरना, जुलूस, हड़ताल, बंद, दंगा या व्यक्तियों के समूह द्वारा पत्थरबाजी, आग लगाने या तोड़फोड़ से सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने पर अब उनसे इसकी क्षतिपूर्ति कराई जाएगी। इसके अतिरिक्त उन लोगों को भी इस कानून के दायरे में लिया गया है जो उक्त कृत्य करने के लिए उकसाने या ऐसे कार्यों को करने हेतु प्रेरित करते हैं। इस विधेयक में नुकसान हुई राशि की दोगुनी रकम तक वसूले जाने का प्रावधान है। राशि के भुगतान न हो सकने की स्थिति में ऐसे लोगों की चल-अचल संपत्ति की नीलामी करने का अधिकार भी सरकार के पास होगा।

इस तरह हम कह सकते हैं कि अब उपरोक्त होने वाले नुकसान में रोक संभव हो सकेगी। ऐसे उन सभी कृत्यों में भी लगाम लगेगी, जिनसे निजी अथवा शासकीय संपत्तियों को नुकसान होता है।

अब बदले हुए परिवेश में अधिकार माँगने वालों के बदले-स्वर कितने प्रभावी होंगे? यह भी देखना होगा कि उक्त प्रदर्शनों, धरना विरोधी आंदोलनों का स्वरूप क्या होता है? विचारणीय बिंदु यह भी है कि अब निजी संस्थानों और सरकारी नुमाइंदों की सोच में भी बदलाव आता है अथवा नहीं। शांतिप्रिय आंदोलनों अथवा विरोध की गतिविधियों पर अब त्वरित निर्णय लेने हेतु ऊपर बैठे लोगों की नैतिक जवाबदेही बन गई है। वहीं जनता और भीड़ के संयम की पराकाष्ठा न चाहते हुए भी कुछ अप्रिय करने पर बाध्य न हो जाए, इसलिए अब दोनों पक्षों के मध्य संवादहीनता अथवा असहमति के बचाव हेतु एक समन्वय मंडल की भी आवश्यकता है जो उभय पक्षों के तथ्यों की जानकारी लेकर समन्वय स्थापित करा सके।

देश हमारा है। सरकार हमारी है और लोग भी अपने हैं। इसलिए जनता, प्रशासन और निजी संस्थानों को आपसी सौहार्दपूर्वक सबके अधिकारों और हक का ध्यान रखते हुए उक्त विधेयक के अनुरूप आगे बढ़ना चाहिए।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत

संपर्क : 9425325353

ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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विजय तिवारी " किसलय "

आदरणीय अग्रज,
आलेख प्रकाशन हेतु अंतस से आभार।
आपका विजय
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