प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “ स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा ”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # काव्य धारा 61 ☆ स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
एक वर्ष लो और बीत गया, नया वर्ष फिर से है आया
सुख सद्भाव शांति का मौसम, फिर भी अब तक लौट न पाया
नये वर्ष संग सपने जागे, गये संग सिमटी आशायें
दुनियां ने दिन कैसे काटे, कहो तुम्हें क्या क्या बतलायें
सदियां बीत गयी दुनियां की, नवीनता से प्रीति लगाये
हर नवनीता के स्वागत में,नयनों ने नित पलक बिछाये
सुख की धूप मिली बस दो क्षण, अक्सर घिरी दुखों की छाया
पर मानव मन निज स्वभाव वश, आशा में रहता भरमाया
आकर्षक पंछी से नभ से, गाते नये वर्ष हैं आते
देकर सीमित साथ समय भर, भरमा कर सबको उड़ जाते
अच्छी लगती है नवनीता, क्योकि चाहता मन परिवर्तन
परिवर्तन प्राकृतिक नियम में, भरा हुआ अनुपम आकर्षण
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, तुमसे हैं सबको आशायें
नये दिनों नई आभा फैला, हरो विश्व की सब विपदायें
मानवता बीमार बहुत है, टूट रहे ममता के धागे
करो वही उपचार कि जिससे, स्वास्थ्य बढ़े शुभ करुणा जागे
सदा आपसी ममता से मन, रहे प्रेम भावित गरमाया
आतंकी अंधियार नष्ट हो, जग को इष्ट मिले मन भाया
मन हो आस्था की उर्जा, सज पाये संसार सुहाना
प्रेम विनय सद्भाव गान हो, भेदभाव हो राग पुराना
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
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