आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट अलविदा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 73 ☆ 

☆ सॉनेट अलविदा ☆

(छंद दोहा)

*

अलविदा उसको जो जाना चाहता है, तुरत जाए।

काम दुनिया का किसी के बिन कभी रुकता नहीं है?

साथ देना चाहता जो वो कभी थकता नहीं है।।

रुके बेमन से नहीं, अहसान मत नाहक जताए।।

कौन किसका साथ देगा?, कौन कब मुँह मोड़ लेगा?

बिना जाने भी निरंतर कर्म करते जो न हारें।

काम कर निष्काम,खुद को लक्ष्य पर वे सदा वारें।।

काम अपना कर चुका, आगे नहीं वह काम देगा।।

व्यर्थ माया, मोह मत कर, राह अपनी तू चला चल।

कोशिशों के नयन में सपने सदृश गुप-चुप पला चल।

ऊगना यदि भोर में तो साँझ में हँसकर ढला चल।

आज से कर बात, था क्या कल?, रहेगा क्या कहो कल?

कर्म जैसा जो करेगा, मिले वैसा ही उसे फल।।

मुश्किलों की छातियों पर मूँग तू बिन रुक सतत दल।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

३०-१२-२०२१

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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