श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय संस्मरण ‘एक छोटी सी पहल…!’ )
☆ संस्मरण # 119 ☆ एक छोटी सी पहल ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
घुघुवा के जीवाश्म विश्व इतिहास में अमूल्य प्राकृतिक धरोहर है, जो हमारे गांव के बहुत पास है और निवास (मण्डला जिला) से बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के रास्ते पर स्थित है।
बहुत साल पहले घुघुवा फासिल्स श्रेणी लावारिस एवं अनजान स्थल था,वो तो क्या हुआ कि एक दिन हमारी खेती का काम करने वाले मजदूर मलथू ने बताया कि भैया जी, बिछिया के पास घुघुवा गांव के जंगल से पत्थर बने पेड़ पौधों को काटकर कोई ट्रकों से रात को जबलपुर तरफ ले जाता है, सुना है कोई बड़े डाक्टर साहब की हवेली बन रही है और ये कलात्मक पत्थर तराश कर हवेली में मीनार बनकर खड़े हो रहे हैं।मलथू की बात सुन हम अपने एक दोस्त के साथ साइकिल से घुघुवा रवाना हुए।
प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर ऊंचे-ऊंचे महुआ के वृक्षों की गहरायी घाटियों के बीच बसे स्वच्छंद विचारों वाले भोले भाले आदिवासी निश्छल,निष्कपट खुली किताब सा जीवन जीते खोये से मिले अपनेपन में। रास्ते भर पायलागी महराज कानों में गूंजता रहा।
हम आगे बढ़े,घुघुवा गांव में मुटकैया के सफेद छुई से लिपे घर के आंगन में साइकिल टिका कर मुटकैया के साथ जंगल तरफ पैदल निकल पड़े। रास्ते में मुटकैया ने बताया कि आजा- परपाजा के मुंहन से सुनत रहे हैं कि पहले यहां समंदर था, करोड़ों साल पहले धरती डोलती रही और उलट पुलट होती रही। पहाड़ के पहाड़ दब गए लाखों साल, फिर से भूकम्प आने पर ये पत्थर बनकर बाहर आ गए।
पार्क के बारे में हमने भी सुना था कि यहां करोड़ों साल पहले अरब सागर हुआ करता था। प्राकृतिक परिवर्तन की वजह से पेड़ से पत्ते तक जीवाश्म में परिवर्तित हो गए। घुघवा में डायनासौर के अंडे के जीवाश्म भी मिले हैं। सही समय पर बाहर ना आने और प्राकृतिक परिवर्तन के चलते ये पत्थर में परिवर्तित हो गए हैं।डेढ दो किलोमीटर तक घूम घूमकर हम लोगों ने पेड़ पत्तियों आदि के जीवाश्म का अवलोकन किया और गांव लौटकर पूरी जानकारी के साथ इसकी रपट जबलपुर के अखबारों और जबलपुर कमिश्नर को भेजी, हमने मांग उठाई कि तुरंत घुघुवा के जीवाश्म से छेड़छाड़ बंद की जानी चाहिए और घुघुवा को नेशनल फासिल्स पार्क के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। अखबारों में छपा और तत्कालीन कमिश्नर श्री मदनमोहन उपाध्याय जी ने प्रेस फोटोग्राफर श्री बसंत मिश्रा के साथ घुघुवा के जीवाश्म श्रेत्र का अवलोकन किया। तत्काल प्रभाव से जबलपुर के डाक्टर की बन रही हवेली से वे कटे हुए जीवाश्म बरामद किए गए। हमारे द्वारा समय-समय पर घुघुवा को राष्ट्रीय जीवाश्म पार्क बनाये जाने हेतु दबाव बनाया गया और अंत में शासन द्वारा छै हजार करोड़ साल पुरानी जीवाश्म श्रृंखला को नेशनल फासिल्स पार्क घोषित कर दिया। धीरे धीरे काम आगे बढ़ा, पार्क के विकास के लिए पहली किश्त पचास लाख रिलीज हुई,उस समय हम भारतीय स्टेट बैंक की सिविक सेंटर शाखा में फील्ड आफीसर थे, अपने प्रयासों से सिविक सेंटर शाखा में घुघुवा नेशनल फासिल्स पार्क का खाता खुलवाया, पार्क विकास संबंधी कार्य सर्वप्रथम जबलपुर विकास प्राधिकरण को सौंपा गया, जबलपुर विकास प्राधिकरण का कार्यालय हमारी शाखा के ऊपर स्थित था, बीच बीच में हम लोग घुघुवा में हो रहे विकास कार्यों को देखने जाते और खुश होते कि छोटी सी पहल से घुघुवा को अन्तर्राष्ट्रीय नक्शे पर स्थान मिला। यहां 6.5 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म पाये गये हैं ये उसी समय के जीवाश्म हैं जब धरती पर डायनोसोर पाये जाते थे | घुघवा के जीवाश्म पेड़ ,पौधों , पत्ती ,फल, फूल एवं बीजों से संबंधित है | घुघवा राष्ट्रीय जीवाश्म उद्यान का कुल क्षेत्रफल 0.27 वर्ग किलोमीटर है | लगातार प्रयास के बाद घुघवा को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया | घुघुवा नेशनल फासिल्स पार्क को महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया। हमने अभी भी मांग की है कि घुघुवा में एक ऐसा शोध संस्थान बनाया जाना चाहिए जहां पृथ्वी के निर्माण से लेकर पेड़ पौधों के फासिल्स बन जाने तक की प्रक्रिया पर शोधकार्य हों।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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