डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 71 – दोहे
सूखे सूखे खेत हैं, भूखे हैं खलियान ।
भरे पेट रहते अगर मरते नहीं किसान।।
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सुलगी बीड़ी हाथ में ,गरमा गया किसान ।
हाथ पैर ठंडे पड़े ,आया घर का ध्यान।।
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भ्रष्टाचारी जब हंसे, मन में गडती की कील।
खौल रही आक्रोश से, स्वाभिमान की झील।।
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जो सपने थे आंख में ,सभी हुए नीलाम।
लेकिन है मजबूत मन होगा नहीं गुलाम।।
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उसके पल्ले है पडी, गई जिंदगी ऊब।
एक नदी घर से निकल, गई नदी में डूब।।
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जिनकी पूंछें कट गई,रहीं न पूछ पछोर।
बेचारे अब क्या – शोर शोर बस शोर।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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बेहतरीन अभिव्यक्ति