(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा लिखित एक विचारणीय आलेख ‘पानी व सम्प्रेषण की नाट्य कला’ । इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
प्रसंगवश, ई- अभिव्यक्ति में प्रकाशित महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई के आयोजन नुक्कड़ नाटक “जल है तो कल है” का उल्लेख करना चाहूंगा। इस नाटक के लेखक श्री संजय भारद्वाज, अध्यक्ष, हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे हैं। आप इसे निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं >>
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 137 ☆
आलेख – पानी व सम्प्रेषण की नाट्य कला
पानी भविष्य की एक बड़ी वैश्विक चुनौती है. पिछली शताब्दि में विश्व की जनसंख्या तीन गुनी हो गई है, जबकि पानी की खपत सात गुणित बढ़ चुकी है. जलवायु परिवर्तन और जनसांख्यकीय वृद्धि के कारण जलस्त्रोतो पर जल दोहन का असाधारण दबाव बना है.
बारम्बार बादलो के फटने और अति वर्षा से जल निकासी के मार्ग तटबंध तोड़कर बहते हैं, बाढ़ के हालात बनते हैं. समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से आवासीय भूमि कम होती जा रही है और इसके विपरीत पेय जल की कमी से वैश्विक रुप से लोगो के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.विश्व की बड़ी आबादी के लिये पीने के स्वच्छ पानी तक की कमी है.
वैज्ञानिक तकनीकी समाधानो के लिये अनुसंधान कर रहे हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि जल आपदा से बचने हेतु हमें अपने आचरण बदलने चाहिये, जल उपयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिये.
किन्तु वास्तव में हम किस दिशा की ओर अग्रसर हैं?
थियेटर ही वह समुचित मीडिया है जो दर्शको को भावनात्मक और मानसिक रूप से एक समग्र अनुभव देते हुये, मानव जाति और उसके पूर्वजो की अनुष्ठानिक पृष्ठभूमि और सांकेतिकता के साथ उनकी विविधता किन्तु पानी के साथ एक सार्वभौमिक सम्बंध का सही परिचय करवा सकता है. इस तरह हमारी विविध सांस्कृतिक समानताओ को ध्यान में रखते हुये दुनिया को देखने और बेहतर समझने का बड़ा दायरा इस प्रदर्शन का सांस्कृतिक तत्व होगा.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈