सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “जब कभी मैं तनहा होती हूँ”। )
साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 10
जब कभी मैं तनहा होती हूँ,
नज्मों की धार पकड़ लेती हूँ
और झूल जाती हूँ
दहर के किसी कोने में छुपे
एहसासों के खूबसूरत से जंगल में!
कभी-कभी इस धार को पकड़
मैं ऊपर को बढती रहती हूँ,
छू लेती हूँ आसमान
और उड़ने लगती हूँ
मस्त परिंदों की तरह…
और कभी-कभी गिर जाती हूँ
नीचे अलफ़ाज़ के दरिया में,
अपनी नाज़ुक उँगलियों से
तब मैं चुनती जाती हूँ एक-एक हर्फ़
और फिर अपनी कलम से
भरती रहती हूँ न जाने कितने सफ्हे,
लिखती रहती हूँ न जाने कितनी किताब…
जीत
दोनों में ही मेरी है,
और फिर जब वापस पहुँचती हूँ
तो देखती हूँ
कि ख़ुशी का एक समंदर
बह रहा है
मेरे ही ज़हन में!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।
वाह उम्दा
Bahut shukriya
Bahut badhiya Kavita lagi Jab Mai kabhi tnha Hoti hu maine likh Liya hai