श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# वैचारिक क्रांति #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 62 ☆

☆ # वैचारिक क्रांति # ☆ 

बड़ी बेखौफ हवा चल रही है

धूप भी छांव में ढल रही है

सुलग रहे हैं आशियाने

आग अंदर ही अंदर जल रही है

 

मुस्कुराते हुए चेहरे है

अंदर घाव बड़े गहरे हैं

कशमकश में डूबे हुए

सैलाब किनारे पर ठहरे हैं

 

यह कैसा अजीब खेल है

दो विपरीत ध्रुवों का

अनोखा मेल है

सिंह और हिरण 

एक नाव में सवार है

जंगल के सभी प्राणी

नाव को रहे ठेल है

 

दंगल में यह कौन

नया खिलाड़ी उतरा है

उसके पास कौनसा

नया पैंतरा है

विश्व विजेता पहलवान

डर कर कह रहा है

उसकी जान को खतरा है

 

जन आक्रोश के आगे

तानाशाह भी झुकते ही है

प्रबल विरोध के आगे

दमन चक्र रूकते ही है

वैचारिक क्रांति

कोई रोक नहीं पाया है

उग्र हुए लोग

राजसिंहासन फूंकते ही है/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments