श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है “राम जी की सेना चली”।)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 11 ☆
☆ राम जी की सेना चली ☆
महान वास्तुकार विश्वकर्मा के पुत्र नल, कुछ वानरों को वास्तु (वास्तुकला विज्ञान) के बुनियादी ढांचे और निर्माण के ज्ञान का प्रशिक्षण दे रहे थे। अग्नि के पुत्र नील लड़ाई के लिए हथियारों को आकार दे रहे थे। भगवान राम की सेना में शामिल होने के लिए स्वर्ग से कुबेर के अवतार, गंधमदाम (‘गंध’ का अर्थ खुशबु/बदबू है और ‘मदाम’ का अर्थ है नियंत्रक, इसलिए गंधमदाम का अर्थ है कि वह जो सभी प्रकार की गंधों पर नियंत्रण रखता है) भी आये थे। उनके पास अपने शरीर की गंध की तीव्रता को नियंत्रित करने की विशेष शक्ति थी।
देवताओं के शिक्षक बृहस्पति के अवतार तार को भी स्वयं बृहस्पति द्वारा भगवान राम की सहायता करने के लिए भेजा गया था।अश्विन कुमार के पुत्र मैन्द (अर्थ : छोटे रास्ते या सड़क) और द्विवेद (अर्थ : दो प्रकार की सच्चाई का ज्ञान), महान चिकित्सक और सर्जन भी युद्ध में घायल होने वाले वानारों की सहायता के लिए भाग लेने आये ।
अश्विन कुमार आकाश के पुत्र, रात्रि और सूर्य उदय के बीच के समय के देवता, जो सुबह आसमान में सबसे पहले दिखाई देते हैं। सुबह (पुसान) के अग्रदूत, चिकित्सा विज्ञान की पुस्तक अश्विन कुमार संहिता इन्हीं की देन है। इन्हें देवताओं के चिकित्सक भी कहा जाता है।
वरुण के पुत्र सुसेनाह (‘सु’ का अर्थ अच्छा या स्वर्गीय और ‘सेनाह’ का अर्थ है वैद्य या डॉक्टर तो सुसेनाह का अर्थ अच्छा चिकित्सक या स्वर्ग का चिकित्सक है) जो अकेले हजारों सेनाओं के बराबर है, भी भगवान राम के पक्ष में धर्म युद्ध में भाग लेने आये ।
© आशीष कुमार