श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता ‘तंग करती कविता’ )
☆ कविता # 122 ☆ तंग करती कविता ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
कविता लिखने के लिए,
आज छुट्टी ले ली है,
दिन भर बिस्तर पर,
कविता – अविता चली,
बिस्तर में लेटकर,
मैदान में खेलता रहा,
फिर बेहूदा डांस,
उसी परदे पर देखा,
आज कविता के लिए,
किसी चैनल में जगह नहीं,
मां के बारे में कविता,
अभी लिखी नहीं है,
नदी का ऐसा है कि,
नदी अभी सूख गई है,
घर का मत पूछो,
वहां अभी मनहूसियत है,
पत्नी अभी बच्ची को,
कविता याद करा रही है,
प्रेमिका बिना प्रेम किए,
बहुत दूर बस गई है,
कविताएँ इधर-उधर,
डूबकर उतरा तो रहीं हैं,
पर गजब है कि कोई,
कविता हाथ नहीं आ रही है,
© जय प्रकाश पाण्डेय
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