श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण रचना “कैसे कहूँ विरह की पीर….”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 107 ☆
☆ कैसे कहूँ विरह की पीर…. ☆
पल पल राह निहारे आँखें, मनवा होत अधीर
जब से बिछुड़े श्याम साँवरे, अँखियन बरसत नीर
नैनन नींद न आबे मोखों, छूट रहा है धीर
बने द्वारिकाधीश जबहिं से, भूले माखन खीर
व्याकुल राधा बोल न पावें, चुभें विरह के तीर
दर्शन बिनु “संतोष” न आबे, काहे खेंचि लकीर
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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