श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत “हिलमिलकर ही जीवन जीना… ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 19 – सजल – हिलमिलकर ही जीवन जीना… ☆
समांत- आई
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 16
जाँगर-तोड़ी करी कमाई ।
बुरे वक्त में काम न आई।।
खूब सुनहरे सपने देखे,
नींद खुली तो थी परछाई।
घुटने टूटे कमर है रूठी,
खुदी बुढ़ापे की है खाई।
लाचारी की चादर ओढ़ी,
सास-बहू के बीच लड़ाई।
हँसी खुशी जीना था जीवन,
सिर-मुंडन को खड़ा है नाई।
मंदिर जैसे होते वे घर ,
सुख-शांति की हुई निभाई।
हिलमिलकर ही जीवन जीना,
इसमें सबकी बड़ी भलाई।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
7 जुलाई 2021
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