श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत “राह देखता खड़ा सुदामा … ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 21 – सजल – राह देखता खड़ा सुदामा … ☆
समांत- ईते
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 16
श्रमिक-रोज शंका में जीते ।
दुख के आँसू खुद ही पीते।।
राह देखता खड़ा सुदामा,
शासक के बस हुए सुभीते।
फल तो कई फले हैं लेकिन,
खाने को कब मिले पपीते।
अखबारों में छपी योजना,
तंत्र लगाते रहे पलीते।
तन-गरीब ऐसे हैं ढकते,
सुइ-धागों से थिगड़े सीते।
हर गरीब का जीना दूभर,
कैसे उनका जीवन बीते।
सबने पाल रखे हैं सपने।
पर उनके दिल दिखते रीते।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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