डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “तोल मोल कर बोल जमूरे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 16 ☆
☆ तोल मोल कर बोल जमूरे ☆
किसमें कितनी पोल जमूरे
तोल मोल कर बोल जमूरे।
कर ले बन्द बाहरी आँखें
अन्तर्चक्षु खोल जमूरे।
प्यास बुझाना है पनघट से
पकड़ो रस्सी – डोल जमूरे।
अंतरिक्ष में वे पहुंचे
तू बांच रहा भूगोल जमूरे।
पेट पकड़कर अभिनय कर ले
मत कर टाल मटोल जमूरे।
टूटे हुए आदमी से मत
करना कभी मख़ौल जमूरे।
संस्कृति गंगा जमुनी में विष
नहीं वोट का, घोल जमूरे।
कोयल तो गुमसुम बैठी है
कौवे करे, मख़ौल जमूरे।
है तैयार, सभी बिकने को
सब के अपने मोल, जमूरे।
फिर से वापस वहीं वहीं पर
यह दुनिया है गोल जमूरे।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014