श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# संत रविदास की बात #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 69 ☆
☆ # संत रविदास की बात # ☆
दुनिया के कैसे कैसे रंग है
सम्मोहन के अनोखे ढंग है
देख के यह जादूगरी
हम तो भाई दंग है
जिसको जीवन भर दुत्कारा
ना कभी आंसू पोंछे, ना पुचकारा
जिसको किया सदा प्रताड़ित
लगा रहे उसके नाम का जयकारा
तोड़ा था जिसका कभी मंदिर
अहंकार की भेंट चढ़ा था मंदिर
फल, फूल, मिठाइयां चढ़ा रहे है
सजा रहे है आज उसी का मंदिर
आज तो हद ही हो गई
मानवता धरती पर आ गई
सारे माथा टेक रहे हैं
कटुता जाने कहां खो गई
कल तक छूना भी पाप था
साया पड़ जाए तो अभिशाप था
तिरस्कृत थे सब “वाल्मीकि”
‘रैदास’ उनका ही तो बाप था
क्या पक्ष या विपक्ष हो भाई
सभी नेताओं ने माला चढ़ाईं
“झांझ” बजाते देश के मुखिया की
मीडिया में खूब फोटो है छाई
क्या चुनाव का यह आकर्षण है
दिखावे का बस यह दर्शन है
मुंह में राम बगल में छुरी
क्या वोटरों को लुभाने
झूठ मूठ का अर्पण है
अंत:करण में बिठाइये
“रैदास” की यह बात
“कर्म” ही जाते हैं
मृत देह के साथ
संत रैदास कह गए-
जाति जाति में जाति है,
जो केतन के पात
रैदास” मनुष ना जुड़ सके
जब तक जाति न जात /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈