श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है बैंकर्स के जीवन पर आधारित एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “अन्तर्मन”।)
☆ कविता # 125 ☆ “अन्तर्मन” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
तुम्हारा इस तरह से
पलकों पे आके बैठ जाना
फिर पलकों पे बैठकर
दिन रात आंसू बहाना
तुम्हारा यूं उठना बैठना
और आंखों को झील बनाना
छुप के चुपके से यहां बैठना
फिर बेवजह जमीन कुरेदना
हर बात पर बहाना बनाना
दिन रात यादों में खो जाना
वायदा करके फिर भूल जाना
पर हरदम तुम ये याद रखना
अन्तर्मन में संघर्ष न पालना
© जय प्रकाश पाण्डेय
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