डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 78 – दोहे
असहायों को लूट कर, बनते श्री संपन्न ।
आँसू उन्हें गरीब के, पल में करें विपन्न।
आँसू निकले हर्ष में, आँसू कहे विषाद ।
आँसू का मतलब कभी अपने प्रिय की याद ।।
आँसू का क्या उत्स है, या पीड़ा या प्यार।
आँसू में ही भीग कर, चलता है संसार ।।
आँसू क्यों जन्मा भला, क्या कुछ थी दरकार।
आँसू निकलें जीत के, बतलाते हैं हार।।
जतलाता है अश्रु ही, परमात्मा का प्यार।
जड़ जीवन को सौंपता, सत्य शील, श्रृंगार।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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