डॉ भावना शुक्ल

 

(हम डॉ भावना शुक्ल जी  के हृदय  से आभारी हैं जिन्होने “साहित्य निकुंज” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ के आग्रह को स्वीकार किया। आपकी  साहित्य की लगभग सभी विधाओं में  रचनाएँ प्रकाशित/प्रसारित हुई हैं एवं आप कई  पुरस्कारों /अलंकरणों से  पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी साहित्यिक यात्रा की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया  >> डॉ. भावना शुक्ल जी << पर क्लिक करने कष्ट करें। अब आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की लघुकथा “रमा बाई”।) 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – #1  साहित्य निकुंज ☆

 

☆ रमा बाई ☆

 

आज तडके ही रमा बाई दौड़-दौड़ी आई बोली… बीबी जी काम जल्दी करवा लो आज नीचे वाले घर में कन्या भोज का बहुत बड़ा परोगराम है ।

हमने कहा “अच्छा तभी आज बहुत सज संवर कर आई हो । आज बच्चे भी साथ लाई हो ।”

“जी बीबी जी, कहिये जल्दी काम करूं नहीं तो 12 बजे के बाद आ पाऊंगी ।”

“ठीक है कोई बात नहीं बाद में ही आना, अभी हम भी आरती में शामिल होने नीचे ही आ रहे है ।”

“अच्छा बीबी जी ।”

ठीक 12 बजे घर की घंटी बजी सामने रमा बाई खडी थी।

हमने कहा – “हम तेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे ।अरे! क्या हुआ चुप क्यों खड़ी हो कुछ तो बोलो।  मुँह पर बारह क्यों बज रहे है? ”

“क्या बताऊं बीबी जी नीचे वाली बीबीजी का सारा काम हो गया । सब कन्या खा कर गई उसके बाद हमने बीबी जी से कहा अब हम भी जायेंगे तो अब हमें भी कुछ प्रसाद खाने को दे दो ।  तो मालूम वह क्या बोली? आज के दिन हम छोटी जाति के लोगों खाना नहीं देते कल देंगे ” ।

तब हम बोली बीबीजी “हमको क्या तुम बासा खाने को दोगी ? अपने पास ही रखो, अभी हमारे घर में इतना खाना है कि आप चलो हम आपको भी खिला देंगे। ”

 

© डॉ भावना शुक्ल

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निर्मल

बहुत अच्छी सामाजिक कहानी है,, बधाई और शुभकामनाएं