श्री अरुण श्रीवास्तव 

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे।  उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आपने ‘असहमत’ के किस्से तो पढ़े ही हैं। अब उनके एक और पात्र ‘परम संतोषी’ के किस्सों का भी आनंद लीजिये। आप प्रत्येक बुधवार साप्ताहिक स्तम्भ – परम संतोषी   के किस्से आत्मसात कर सकेंगे।)     

☆ कथा – कहानी # 20 – परम संतोषी भाग – 6 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

शाखा में निरीक्षण के दौरान बहुत से परिवर्तन आते हैं जिनसे संकेत मिल जाता है कि ब्रांच इज़ अंडर इंस्पेक्शन.

नीली, काली और लाल इंक के साथ नज़र आने लगती है हरियाली याने ग्रीन इंक. ये ग्रीन इंक अनुशासन, टाइमिंग, वेश विन्यास, कर्मठता, शांत वातावरण जो सिर्फ और सिर्फ कस्टमर की आवाजों का व्यवधान पाता है, की द्योतक होती है. आने वाले नियमित और अनुभवी, नटखट या चालाक कस्टमर समझ जाते हैं कि उनके अटके काम, इंस्पेक्शन के दौरान पूरे होने की संभावना बन गई है. हालांकि स्टाफ उनके काम इंस्पेक्शन के बाद करने का आश्वासन देकर और उनकी समझदारी की तारीफ कर उनको विदा करता रहता है.

इंस्पेक्शन के दौरान बुक्स तो बैलेंस हो जाती हैं पर स्टाफ की दिनचर्या अनबेलेंस हो जाती है. घर के लिये जरूरी किराना और सब्जियां लाने का काम, इंस्पेक्शन के बाद करने के आश्वासन के साथ मुल्तवी कर दिया जाता है. अगर शहर से पहचान और दोस्तो का दायरा बड़ा हो या फिर संतानें इतनी बड़ी हों कि सब्जी की खरीददारी कर सकें तो बैंक के लंच बॉक्स में सब्जी नज़र आ जाती है वरना कभी कभी तड़केदार दाल का सामना भी करना पड़ जाता है. इंस्पेक्शन के दौरान चाय कॉफी, उंगलियों के इशारे पर करने की व्यवस्था किया जाना भी स्टाफ के मॉरल को बूस्ट करने के काम आता है.

निरीक्षण में बेलेसिंग और पिछली तारीख की केशबुक के एक एक वाउचर को ग्रीन इंक से टिक करते हुये बेलेंस करना और चेक करने की परंपरा, बैंक मास्टर से पहले अस्तित्व में थी जिसके लिये बैलेसिंग एक्सपर्ट और अतिरिक्त स्टाफ की सहायता और छुट्टी के दिनों का भरपूर उपयोग किया जाता था. आसपास की छोटी व आश्रित शाखाओं के  समझदार और दुनियादार शाखा प्रबंधक भी अवकाश के दिनों में या शाखा से लौटने के बाद इस काम में पुण्य अर्जित करने का प्रयास करते थे ताकि वक्त आने पर रिलीफ अरेंजमेंट के लिये वो इस कारसेवा का नकदीकरण कर सकें.

निरीक्षण में ऋण विभाग महत्वपूर्ण होता है. समझदार और कुशल फील्ड ऑफीसर, पद ग्रहण करते ही पिछली इंस्पेक्शन रिपोर्ट पढ़ पढ़कर अपनी डेस्क चमकाना शुरु कर देते हैं. अनुभवी अधिकारी सारे बड़े ऋण खातों की फाइल और दस्तावेज सिलसिलेवार जमा लेते हैं. आवेदन, विश्लेषण और अनुशंसा, स्वीकृति, अनुमोदित कंट्रोल रिटर्न, इंश्योरेंस, वाहनों के प्रकरणों में रजिस्ट्रेशन, केश क्रेडिट खातों में अद्यतन रिव्यू रिन्यूअल, रिवाइवल, हर दस्तावेज अपने निरीक्षण के हिसाब से इस तरह पेश किया जाता है कि निरीक्षण अधिकारी भी खुश होकर कह देते हैं “बहुत अच्छा,कितने इंस्पेक्शन फेस कर चुके हैं. जवाब शब्दों से नहीं बल्कि विनम्रता में पगी हल्की मुस्कान से दिया जाना ही व्यवहारिक होता है. अग्रिम के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों का मितभाषी होना हमेशा फायदेमन्द होता है. जो पूछा जाय सिर्फ वही कम से कम शब्दों में प्रगट किया जाये. बड़बोले अक्सर गच्चा खा जाते हैं और चापलूसी हमेशा इंस्पेक्शन अधिकारी को शंकित करती है.

निरीक्षण अधिकारी भी मानवीय आवश्यकताओं और दुर्बलताओं से बंधे होते हैं सुबह नौ बजे से लगातार बैठकर काम करते रहने पर शाम 6 बजे के करीब संतोषी साहब आगे बढ़कर संक्षिप्त सांयकालीन वॉक प्रस्तावित करते थे और सहायक महाप्रबंधक के साथ शहर भ्रमण पर निकल जाते थे. लगभग 30-40 मिनट का यह वॉक, और बैंक के बाहर बह रही शुद्ध शीतल हवा, दिनभर की थकान और बोरियत को उड़न छू कर देती थी. इस दौरान नगर से संबंधित ऐतिहासिक और वर्तमान की जानकारियों पर ही चर्चा की जाती थी. शाखा के संबंध में कोई बात उठने पर संतोषी जी बड़ी चतुराई से विषय परिवर्तन कर देते थे. सहा. महाप्रबंधक महोदय समझते हुये हल्के से मुस्कुरा देते थे. अंत में कुछ दिनों की इस सायंकालीन समीपता के जरिये सहायक महाप्रबंधक महोदय, संतोषी जी के परिवार के बारे में काफी कुछ जान गये. नियमित संतुलित दक्षिण भारतीय भोजन, परिवार की पहचान पहले से दे रहा था और सहायक महाप्रबंधक ने संतोषी जी को आश्वास्त किया कि निरीक्षण समाप्ति के एक दिन पूर्व वे अवश्य ही उनके घर पर उनके परिवार के साथ बैठकर, अपनी पसंदीदा फिल्टर कॉफी का आनंद लेंगे. शाखा का निरीक्षण अपनी सामान्य गति से भी ज्यादा तेज गति से चलता रहा और धीरे धीरे अनुमानित क्लोसिंग डेट भी पास आ गई.

अपने आश्वासन के अनुरूप सहायक महाप्रबंधक महोदय, संतोषी जी के निवास पर पधारे. शाखा के मुख्य प्रबंधक वयस्त थे तो चाहने के बावजूद वे नहीं आ सके. पर सहायक महाप्रबंधक महोदय अकेले नहीं आये थे, वे अपने साथ चांदी के लक्ष्मी गणेश जी भी लेकर आये थे जो संतोषी जी के परिवार को उपहार स्वरूप दिये जाने थे. फिल्टर कॉफी की रिफ्रेशिंग सुगंध के बीच उस मेहमान का बड़े सम्मान और आत्मीयता के साथ स्वागत किया गया, जो अपनी निरीक्षणीय शुष्कता के बीच अपनी मानवीय स्निग्धता को अक्षुण्ण रखने में कामयाब थे. संतोषी जी की बेटियाँ की रौनक से घर प्रकाशित था और यह प्रकाश अलौकिक था. सुस्वादु भोजन से प्रारंभ निकटता, फिल्टर कॉफी की खुशबू के बीच ऐसी आत्मीयता में बदल गई कि सहायक महाप्रबंधक महोदय कब सर से अंकल बन गये, पता ही नहीं चला. इंस्पेक्शन के कारण अपनी संतानों से दूरी, इस परिवार से मिलकर अद्भुत शांति प्रदान कर रही थी. संतोषी जी के परिवार में बह रही स्निग्धता और आपसी स्नेह, संतोषी जी के संतुष्ट होने का स्त्रोत घोषित कर रहा था और सहायक महाप्रबंधक महोदय को भी रेट रेस याने चूहा दौड़ और टंगड़ीमार प्रतियोगिता की निर्थकता का संदेश दे रही थी. बैंक में कई वर्कोहलिक प्राणी पाये जाते हैं जिनकी घड़ी चौबीसों घंटे टिक टिक की जगह काम काम की ध्वनियों गुंजायमान करती रहती है. असंतुलित व्यक्तित्व, असंतुष्ट परिवार और कैरियर की हिमालयीन अपेक्षा, अक्सर अनुपयुक्त लक्ष्यों की जगह मानसिक शांति और प्रसन्नता छीन लेती है और मानव रुपी ये रोबोट, बड़ी आसानी से यूज़ किये जाते हैं. काम करना,दक्षतापूर्वक काम करना बुरा नहीं है पर अगर रेट रेस में जीतने की अतृप्त लालसा परिवार का संतुलन भंग कर रही है तो ऐसे प्राणियों को स्वयं विचार करने की आवश्यकता है. जीवन पर बैंक के साथ साथ परिवार का भी अधिकार और अपेक्षाएं होती हैं और परिवार के मुखिया होने के नाते दायित्व भी, कि परिवार और नियोक्ता के बीच में संतुलन बनाकर रखे.

यह कथा मैं अपने अमरीका प्रवास के दौर में लिख रहा हूँ और यहाँ के वर्क कल्चर में नियोक्ता संस्था द्वारा अपने इंप्लाइज की व्यक्तिगत और पारिवारिक जरूरतों को भी उतनी ही महत्ता दिये जाने की संस्कृति से परिचित हो रहा हूँ. विकासशील भारत और विकसित अमरीका के वर्क कल्चर की यह अनुभवित भिन्नता, बहुत कुछ समझाती है.

परम संतोषी कथा जारी रहेगी भले ही असंतुष्ट जीव इसे पसंद करें या न करें …. 

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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