श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना बसंती बयार …”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 90☆ बसंती बयार  

बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही फागुन भी दस्तक देने लगता है। मौसम का असर सभी पर पड़ना स्वाभाविक है। इस समय तो चुनावी माहौल होने के कारण रंगों की राजनीति भी जोर पकड़ती दिख रही है। कौन आएगा कौन जाएगा ये तो मतदाता की इच्छा पर निर्भर करेगा किन्तु पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी – अपनी तैयारियों में व्यस्त हैं। पहले चुनावी टिकट के लिए घमासान मचा हुआ था। अब मनोरंजन हेतु देश -विदेश की यात्रा के टिकट के लिए मारामारी हो रही है। एक दूसरे को समझते- समझाते वे ये भूल गए थे कि उन्हें अपनी यात्रा भी तो सुनिश्चित करनी है। ऊँट किस करवट बैठेगा इसका अंदाजा तो उन्हें है किंतु सकारात्मक चिंतन के वशीभूत वे देखकर भी अनदेखा करने में महारथी हो रहे हैं।

कहा भी गया है आँख ओट पहाड़ ओट, अच्छा है परिवर्तन होना ही चाहिए। भले ही सत्ता का हो, स्थान का हो, दल या विचारधारा का हो। डॉक्टर भी रोगियों को यही कहते हैं कि आप जगह बदलें,हवा- पानी बदलते ही दवा- दारू भी असर करने लगेगी। चुनावी जोड़तोड़ में दो महीने की मेहनत कितना रंग लाएगी ये तो मतपेटी में पड़े हुए बैलेट पेपर ही तय करेंगे पर होली में कौन सा रंग सबके चेहरों पर दिखाई देगा ये चुनावी परिणाम ही बताएंगे। आम मतदाता तो जिधर का पड़ला भारी देखेगा उसी ओर मुड़ जाएगा। उसे तो रंगों से खेलना है चाहें कोई भी रंग क्यों न हो।

मौखिक प्रचार में सभी लोग लगे हुए हैं। अपना प्रत्याशी जीते ये न केवल कार्यकर्ता चाहते हैं वरन मतदाता भी हवा का रुख निर्धारित करते हुए देखे जा सकते हैं। प्रादेशिक चुनाव केवल उस विशेष राज्य तक सीमित नहीं रह गए हैं। उनका भी कार्यक्षेत्र बढ़ है। अब सब लोग केंद्र के साथ ही अपने प्रदेश की गोटी फिट करना चाह रहे हैं। बदलाव का असर हो रहा है, लोकतंत्र की विशालता चुनावों की गतिविधियों द्वारा ही तय होती है। जागरूकता का असर साफ दिखाई दे रहा है। जैसे- जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता जाएगा, लोगों को रोजगार मिलेगा, उनके पेट भरे होंगे वैसे- वैसे चुनावी मुद्दे भी बदलेंगे। अब दलों को भी अपने कार्यों पर पूरे पाँच वर्षों का लेखा – जोखा देना होगा क्योंकि मतदाता जागरूक हो रहा है। किस रंग से रंगे ये निर्धारण अब वो स्वयं करेगा। मौसम हर बार बासंती नहीं हो सकता।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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