डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की एक आध्यात्मिक कविता/गीत “तेरे दर्शन पाऊं”. डॉ मुक्ता जी के इस रचना में गीत का सार भी कहीं न कहीं इस पंक्ति “मन मंदिर की बंद किवरिया, कैसे बाहर आऊं “ में निहित है.)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 19 ☆
☆ तेरे दर्शन पाऊं ☆
मनमंदिर की जोत जगा कर तेरे दर्शन पाऊं
तुम ही बता दो मेरे भगवान कैसे तुझे रिझाऊं
मन मंदिर……
पूजा-विधि मैं नहीं जानती, मन-मन तुझे मनाऊं
जनम-जनम की दासी हूं मैं, तेरे ही गुण गाऊं
मन मंदिर……
मेरी अखियां रिमझिम बरसें, कैसे दर्शन पाऊं
कब रे मिलोगे, गुरुवर नाम की महिमा गाऊं
मन मंदिर……
जीवन नैया ले हिचकोले, पल-पल डरती जाऊं
बन जाओ तुम ही खिवैया, बार-बार यही चाहूं
मन मंदिर…….
घोर अंधेरा राह न सूझे, मन-मन मैं घबराऊं
मन ही मन डरूं बापुरी, नाम की टेर लगाऊं
मन मंदिर…….
सुबह से सांझ हो चली, तुझे पुकार लगाऊं
मन मंदिर की बंद किवरिया, कैसे बाहर आऊं
मन मंदिर…….
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
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