श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत “सामंजस्य रहे जीवन में… ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 23 – सजल – सामंजस्य रहे जीवन में… ☆
समांत- अन
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 16
नारी ही नारी की दुश्मन।
उनसे ही सजता नंदनवन।।
गंगा जब बहती है उल्टी,
जीवन में बढ़ जाती उलझन।
पांचाली, कैकयी, मंथरा,
युग में मचा गई हैं क्रंदन।
खिचीं भीतियाँ घर-आँगन में,
परिवारों में होती अनबन ।
सीता, रुक्मिणी या सावित्री,
होता उनका ही अभिनंदन ।
समरसता समभाव बने तो,
जीवन भर महके है चंदन ।
सास-बहू, ननदी-भौजाई,
गूढ़ पहेली का है कानन।
सामंजस्य रहे जीवन में,
हँसी-खुशी में डूबे तन-मन।
पड़ें हिंडोले बाग-बगीचे,
जेठ गया तब आया सावन।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
10 जुलाई 2021
संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002
मो 94258 62550
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈