श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक विषय पर आधारित विचारणीय कविता “भूख जहाँ है………”।)
☆ तन्मय साहित्य #122 ☆
☆ भूख जहाँ है……… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
भूख जहाँ है, वहीं
खड़ा हो जाता है बाजार।
लगने लगी, बोलियां भी
तन की मन की
सरे राह बिकती है
पगड़ी निर्धन की,
नैतिकता का नहीं बचा
अब कोई भी आधार।
भूख जहाँ………….
आवश्यकताओं के
रूप अनेक हो गए
अनगिन सतरंगी
सपनों के बीज बो गए,
मूल द्रव्य को, कर विभक्त
अब टुकड़े किए हजार।
भूख जहाँ……………
किस्म-किस्म की लगी
दुकानें धर्मों की
अलग-अलग सिद्धान्त
गूढ़तम मर्मों की,
कुछ कहते है निराकार
कहते हैं कुछ, साकार।
भूख जहाँ………….
दाम लगे अब हवा
धूप औ पानी के
दिन बीते, आदर्शों
भरी कहानी के,
संबंधों के बीच खड़ी है
पैसों की दीवार।
भूख जहाँ………….
चलो, एक अपनी भी
कहीं दुकान लगाएं
बेचें, मंगल भावों की
कुछ विविध दवाएं,
सम्भव है, हमको भी
मिल जाये ग्राहक दो-चार।
भूख जहाँ है,,…………
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈