श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 112 ☆
☆ आलेख – आत्मानंद साहित्य #112 ☆ वसंत /मधुमास ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
इस धरती पर अनेक सभ्यता अनेक संस्कृति अनेक प्रकार के आहार विहार , तथा रहन सहन देश काल प्राकृतिक परिस्थितियों के अनुसार, व्यवहार में प्रयुक्त होते है, कहीं कहीं बारहों मास एक जैसा प्राकृतिक मौसम रहता है, इसी धरती पर कहीं बारहों मास बरसात होती है तो कहीं भयानक ठंड पड़ती है, तो कहीं मरूस्थलीय इलाके बिना बरसात के सूखे रहते हैं , लेकिन एक मात्र भारत वर्ष ही एकमात्र ऐसा देश है जहां जाड़ा, गर्मी, बरसात, चार चार महीने के तीन मौसम है तो, दो दो महीने की छः ऋतुएं है जिसमें उष्म, ग्रीष्म, शरद, शिशिर, हेमंत, वसंत है ,यहां हमारी परिचर्चा का विषय वसंत/मधुमास है इस लिए चर्चा की विषय वस्तु भी यही है।
हेमंत ऋतु की अवसान बेला के अंत में बसंत ऋतु का आगमन होता है ,उसका धरती पर प्राकट्योत्सव हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को, मनाया जाता है, बसंत के आगमन का संदेश खेतों में खिले सरसों के पीले पीले फूल मटर के सफेद गुलाबी फूल तथा अलसी के नीले रंग के फूल देते हैं, वृक्ष में फूटती हुई कोंपले तथा उनके भीतर से निकले नव पल्लव प्रकृति के सम्मोहक स्वरूप का दर्शन कराते है और मानव जीवन को नव चेतना तथा उमंग उत्साह से भर देते है। वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि तथा होली बासंती पर्व है,इनका बड़ा ही गहरा नाता प्राकृतिक रूप भारतीय जीवन पद्धति से जुड़ा है। वहीं पर मधु मास का आरंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम तिथि एकम से आरंभ होता है,इसी पक्ष के प्रथम तिथि से
बासंतिक नवरात्र आरंभ होता है, तथा नवमी तिथि को रामनवमी के दिन रामजन्म के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। और उसी दिन शारदीय नवरात्र का समापन होता है।
मधुमास के बारे में राम जन्म के प्रसंग में मधुमास का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि—–
नवमी तिथि मधुमास पुनीता।
सुखद पक्ष अभिजित हरि प्रीता।।
मध्यदिवस अति शीत न घामा।
पावन काल लोक विश्रामा।।
(रा०च०मा०बा०का०)
यह बसंत ऋतु के शैशव तथा युवा से प्रौढ़ावस्था में प्रवेश कर मधुमास के आगमन का संकेत देता है। इस समय बहुत तेजी के साथ प्राकृतिक परिवर्तन होता है। खेतों में फसलों की बालियां दानों से लद जाती है। बाग बगीचों अमराई में आम्र मंजरियों कटहल तथा महुआ के फूलों और मधुमक्खियों के छत्तों से मधुरस टपकने लगता है, बगीचों से होकर गुजरने वाली भोर की ठंडी हवा के झोंको पर सवार हो मादक सुगंध लेकर सैर को निकलने वाली हवा मानव मन तथा जीवन को एक
अलग ही मस्ती से भर देती है, रामनवमी तथा बैसाखी का उत्सव मधुमास के त्योहार है , जिसमें पकने वाली फसलें खेत खलिहानों को समृद्ध कर देते हैं बगीचों में आम के टिकोरे, तथा बगीचों की कर्मचारियों में खिलने वाले गेंदा बेला गुलाब डहेलिया के पुष्प आकर्षक नजारों के मोह पास में मानव को जकड़ देते हैं । तभी तो ऋतु राज वसंत को कामदेव का प्रतिनिधि कहा जाता है ,और काम के प्रहार से नवयुवा मन त्राहि-त्राहि कर उठता है, और बिरहिनि का मन आकुल व्याकुल हो उठता है।
जिसमें संयोग जहां सुखद अनुभूति कराता है वहीं बियोग चैता तथा होली गीतों के सुर के साथ मुखरित हो उठता है।
– सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266