आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित ‘सॉनेट गीत – तुम’।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 84 ☆
☆ सॉनेट गीत – तुम☆
ट्रेन सरीखी लहरातीं तुम।
पुल जैसे मैं थरथर होता।
अपनों जैसे भरमातीं तुम।।
मैं सपनों सा बेघर होता।।
तुम जुमलों जैसे मन भातीं।
मैं सचाई सम कडुवा लगता।
न्यूज़ सरीखी तुम बहकातीं।।
ठगा गया मैं; खुद को ठगता।।
कहतीं मन की बात, न सुनतीं।
जन की बात अनकही रहती।
ईश न जाने क्या तुम गुनतीं।।
सुधियों की चादर नित तहती।।
तुम केवल तुम, कोई न तुम सा।
तुम में हूँ मैं खुद भी गुम सा।।
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
८-३-२०२२
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