श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “भोर की किरणें खिली हैं… ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 25 – सजल – भोर की किरणें खिली हैं… ☆
समांत- आरे
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 14
है तिरंगा फिर निहारे ।
देश की माटी पुकारे।।
थाम लें मजबूत हाथों,
मातु के हैं जो दुलारे ।
सैकड़ों वर्षों गुलामी,
बहते घाव थे हमारे ।
भगत सिंह,सुभाष गांधी,
हैं सभी जनता के प्यारे।
स्वराज खातिर जान दी,
हँसते-हँसते हैं सिधारे। १५
देश की उल्टी हवा ने,
बाग सारे हैं उजारे।
सीमा पर रक्षक डटे हैं,
कर रहे हैं कुछ इशारे।
बाँबियों में फिर छिपे हैं
मिल सभी उनको बुहारे।
हैं पचहत्तर साल गुजरे,
खुशी से हँसते गुजारे।
भोर की किरणें खिली हैं,
रात में चमके सितारे ।
निर्माण-की वंशी बजी,
देश को मिल कर सँवारे ।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
02 अगस्त 2021
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