डॉ. सलमा जमाल
(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।
आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।
आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक कविता “पत्र – बाबू जी के नाम”।
साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 18
कविता – पत्र – बाबू जी के नाम — डॉ. सलमा जमाल
बाबूजी,
मेरे जनक,
मेरे पिता,
महसूस करती हूं,
तुम्हारी व्यथा ——
माँ को दिया,
सम्मान ज़्यादा,
जबकि दोनों
थे बराबर,
सम्मान होना
चाहिए था,
दोनों का आधा-आधा ——
अगर माँ ने
गीले से,
सूखे में लिटाया,
तो पिता भी,
परिश्रम करके
बाज़ार से फ़लिया,लंगोट
ख़रीद कर लाया ——
माँ ने उंगली
पकड़कर,
उठना, बैठना,
चलना सिखाया,
तो पिता ने भी
कांधे पर बैठाकर
घोड़ा बन टहलाया ——
अगर बीमारी में,
रात – रात भर,
माँ ने जागकर
देखभाल की,
तो पिता ने,
दवाई डॉक्टर की
फ़ीस भी तो अदा की ——
माँ ने हाथों से,
कौर बना कर
खिलाया तो,
पिता भी पसीना
बहाकर, तपकर,
दो जून की रोटी
कमा कर लाया ——
माँ ने साल दो साल,
आँचल से दूध पिलाया,
तो पिता ने,पच्चीस वर्षों तक
हमें पाला – पोसा,
पढ़ाया – लिखाया
हमें युवावस्था
तक पहुंचाया ——
हम उन्हें,
एक अच्छे पिता,
ना होने का,
सदैव ही
उलाहना देते थे,
परंतु वो मुस्कुराकर
सदा चुप रहते थे ——
वग़ैर शिक़ायत,
वो चले गये,
आज उनके
गुज़रने के बाद,
जब मैंने उनकी ज़िम्मेदारी
उठाई तो हृदय,
क्यों भर आया ? ——
अलमारी में केवल
दो जोड़े थे,
जब उनके कपड़े पहने,
तो शरीर सिहर उठा,
कंधे बोझ से झुक गए,
धूप में बढ़ते हुए,
क़दम अचानक रुक गए ——
अब समझ में आई
उनकी वेदना,
परिवार के प्रति भावना,
धर्म कानून के सम्मुख
माँ का स्थान ऊंचा था,
माँ का अधिकार
नौ माह ज़्यादा था ——
मैं तो कहती हूँ,
अगर माँ स्वर्ग है,
तो पिता स्वर्ग का द्वार,
अगर माँ देवी तो
पिता देव का अवतार
जो करता है सेवक की भांति
हमारी साज – संवार ——-
पिता की मेहनत
भावनाओं को
हम नहीं सकते नकार
जन्म के सूत्रधार,
मेरे जन्म दाता
पालनहार पिता को
नमन करती हूँ बार-बार ——
बाबूजी तुम्हारी कुछ
ख़िदमत कर पाती,
जिसने भी
पिता दिवस बनाया,
उत्कृष्ट कार्य किया है,
उसने पिता को
अन्दर तक जिया है ——
जब भी संकट की,
आंधियां चलीं
तुमने वट वृक्ष बन कर
उसके नीचे हमें सहेजा है
नहीं जताया
कौन बेटी है ?
कौन बेटा है ? —–
© डा. सलमा जमाल
298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈