डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं होली पर्व पर विशेष “भावना के दोहे – होली”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 123– साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – होली ☆
बरजोरी तुम ना करो, अपनी ले लो राह।
नहीं मिलेगी कान्हा, घर में हमें पनाह।।
रंग पिया का लग गया, चढ़ा प्यार का रंग।
रंग बिरंगी हो रही, लगे फड़कने अंग ।।
अंतर्मन से जो कहा, सुन ली मन की बात।
होली में मन मिल गए, मिलती है सौगात ।।
ढूंढ रहे है सब मुझे, लिए हाथ में रंग।
छिपती छिपती फिर रही, अपने मोहन संग।।
अबीर गुलाल संग है, मिला फागुनी प्यार।
मिल बैठे खाएं सभी, मीठी गुझिया चार।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈