हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #19 – घरेलू बजट ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव
सुश्री अनुभा श्रीवास्तव
(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “ घरेलू बजट” । इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने # 19 ☆
☆ घरेलू बजट ☆
हिन्दू कलैण्डर के हिसाब से दीपावली से दीपावली तक बही खाता रखा जाता है, प्रायः आय व्यय की नई बही बनाकर, उसकी पूजा करके दूकानदार दीपावली के बाद से नया खाता सुरू करते हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से शासकीय रूप से १ अप्रैल से ३१ मार्च का समय वित्त वर्ष के रूप में माना जाता है। यही कारण है कि राज्य व केंद्र सरकार फरवरी के महीने में सदन में नये वित्तीय वर्ष के लिये बजट प्रस्तुत करती हैं।
बजट का मतलब होता है आमदनी व खर्च का अनुमान.इन दिनो अखबारो, व समाचारो में प्रायः बजट की चर्चा पढ़ने सुनने को मिल जाती है। क्या आपने कभी अपने घर का बजट बनाया है ? आपकी मासिक आमदनी कहां खर्च होती है? क्या आपने कभी इस बात का हिसाब लगाया है कि आपके घरेलू खर्चो पर आपकी आय का कितना हिस्सा खर्च हो रहा है? भविष्य के लिये आप कितनी बचत कर रही हैं? आप ही अपने घर की गृह मंत्री और वित्त मंत्री भी हैं अतः घर के बजट बनाने और उसे क्रियांवित करने की जबाबदारी भी आपकी ही है।
घरेलू बजट बनाने का अर्थ घर के सभी खर्चों का हिसाब लगाने से कहीं बढ़कर है। इसके जरिए आप हिसाब लगा सकती हैं कि आपकी आय में से कितना खर्च होता है और कितना इसमें से बचाया जा सकता है। समय पर बच्चो की फीस, बिजली, पानी, अखबार, दूध किराने के बिलों का भुगतान करना, कर्जों का सही समय पर निपटारा करना और अपने बचत, निवेश लक्ष्यों को हासिल करना भी घरेलू बजट के अंतर्गत आता है।
घर का बजट बनाने का सबसे सही उपाय है कि आप खर्चों के लिए अलग-अलग लिफाफे बनाएं (किराए, बिजली बिल, कार ईएमआई इत्यादि) इसके जरिए आप बिल्कुल सही तरीके से जान पाएंगे कि कि कितना पैसा किस मद पर खर्च हो रहा है। और अगर कुछ बचता है तो आप बची हुई राशि को अगले महीने के लिए बचाकर रख सकते हैं या फिर अपनी बचत के रूप में अलग भी रख सकते हैं।
योजना बनाने से शुरूआत करें
शुरूआत के लिए अपनी छोटी से बड़ी जरूरतों और इच्छाओं की लिस्ट बनाकर देखें। खर्चों को जरूरतों और चाहतों के बीच बांटने से आपको ज्ञात होगा कि जीने के लिए किन चीजों की जरूरत है और कौन-कौन से खर्चे सिर्फ आपकी जीवन-शैली को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक हैं।
बजट का एक उपयुक्त फॉर्मेट बनाएं
आपको अपनी मासिक आय के हिसाब से चलना होगा और इसके आधार पर ही लागत निकालनी होगी। तो सारी अंकगणना और हिसाब-किताब इस तरह से करें कि आपके साल भर का बजट तैयार हो जाए। आमदनी के रूप में वेतन, बच्चो को मिलने वाली स्कालरशिप, मकान किराया, अन्य संभावित इनकम, आदि को एक ओर लिखें। दूसरी ओर की लिस्ट बड़ी होगी, घर के सभी सदस्यो के साथ बैठकर नियमित व आकस्मिक खर्चो को सूची बद्ध करें पिछले साल हुये खर्चो को संभावित मंहगाई के कारण थोड़ा बढ़ाकर जोड़ें। इसके बाद देखें कि आपकी सालाना आमदनी में ये फिट हो रहा है या नहीं।
सिर्फ बजट बनाना ही काफी नहीं है, इसे देखें कि आपका बजट केवल कागजों पर ही नहीं बल्कि असली जिंदगी में भी सही चल रहा है या नहीं। एक सही बजट वही है जो देखने में भले ही साधारण हो लेकिन आपकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल साबित हो।हर थोड़े दिनों बाद बजट का विश्लेषण भी कर सकते हैं।
आकस्मिक खर्चों के लिए तैयार रहें…
कार मरम्मत, चिकित्सा खर्च, शादी और जन्मदिन, घरेलू उपकरणों का रख-रखाव, आकस्मिक यात्राएं ऐसे खर्च हैं जिनके लिए आपके बजट में कुछ स्थान जरूर होना चाहिए।
जिम्मेदारियां बांटे-
अगर आपके परिवार में वयस्क और युवा लोग हैं तो बेहतर होगा कि उन्हें भी इस बात की जानकारी हो कि एक पूरे महीने मासिक आमदनी को कैसे चलाया जाता है। इसके अलावा अगर आपके घर में बच्चे हैं तो उन्हें भी इसकी जानकारी दें और सिखाएं कि बजट कैसे बनाया जाता है। आप निश्चित ही ये देखकर हैरान होंगे कि आपके बच्चों के पास कितने नए और उपयोगी सुझाव हैं।
लक्ष्य निर्धारित करें
हर महीने कुछ पैसे बचाने का लक्ष्य बनाएं और इसके जरिए कुछ हासिल करने पर खुशी महसूस करें। चाहे वो कोई मोबाइल हो, या छुट्टी पर बाहर जाने का प्रोग्राम हो। इसके लिए एक तरीका है कि आप छोटी-छोटी चीजों के लिए क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से बचें और ईएमआई पर वस्तुएं खरीदनें से बचें।
बजट बनाने का मतलब ये नहीं है कि आप किसी फंदे में फंस गए हैं। ये आपकी आर्थिक स्वतंत्रता और सहूलियत के लिए होना चाहिए ना कि कोई बंधन। एक अच्छा बजट आपको पैसे पर नियंत्रण के रूप में बड़ी ताकत देता है। इसके जरिए आप अपने खर्चों को अधिक तर्कसंगत बनाते हैं।
आपने सुना होगा कि केंद्र सरकार के खर्चे बढ़ गए हैं। सरकार इन खर्चो को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है। इसी तरह आप भी अपने खर्चो को नियंत्रित करें।
प्राथमिकताएं तय करें
सरकार अपने बजट में प्राथमिकता के क्षेत्र तय करती है। वो स्वास्थ्य, शिक्षा आदि को इस क्षेत्र में रखती है। आपको भी अपने खर्चे की प्राथमिकताएं जरूर तय कर लेनी चाहिए। मसलन अगर आपकी प्राथमिकता ये है कि बच्चो को अच्छी शिक्षा मिले तो फिर उस पर खर्च करना जरूरी है। अगर आपने कर्ज ले रखा है, तो उसके भुगतान को भी नहीं भूलना चाहिए।
हर साल बजट बनाएं
बजटिंग को आदत में शामिल करें। अगर इसमें कुछ वक्त भी लगे और कुछ झंझट समझ में आए, तो भी इस काम को करें। अगर आपको इसमें कुछ दिक्कत समझ में आती है, तो इसे आसान बनाएं। खर्चो को लिखें। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आप इसके लिए गंभीर नहीं हैं। इसके लिए आप विशेषज्ञ की सलाह भी ले सकते हैं। जब भी आपको बोनस या अतिरिक्त मुनाफा हो, तो बड़े खर्चो के लिए पैसा बचाएं। मसलन छुट्टियां बिताने के लिए या फिर त्यौहारो पर होने वाले खर्चे के लिए पैसा बचाएं। बचत भी आमदनी ही है।
कहावत है कि जितनी चादर हो पैर उतने ही फैलाने चाहिये, बजट बनाने से आपको अपनी चादर का आकार स्पष्ट रूप से मालूम होता है फिर आप यह तय कर सकती हैं कि आपको चादर बड़ी करनी जरूरी है या पैर सिकोड़कर काम चलाया जा सकता है।
© अनुभा श्रीवास्तव