श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 114 ☆
☆ होली के रंग ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
भंग की तरंग हो,
होली का रंग हो।
जीजा हो साली हो,
साथ ही घर वाली हो।
हल्ला हुड़दंग हो,
यारों का संग हो।
पुआ मिठाई हो,
गुझिया नमकीन हो।
आंखों में सपने हो,
मौका रंगीन हो।
।। होली का रंग हो।।1।।
रंगों की बारात हो,
प्यार की बरसात हो।
खींचा हो तानी हो,
हमजोली से मनमानी हो।
चाहे हाथ तंग हो,
उत्सव उमंग हो।
भरपूर प्यार हो,
जीवन में बहार हो।
चाहत हसीना की,
सपने हसीन हों।
मेल हो मिलाप हो,
गायब संताप हो।
।।होली का रंग हो।।2।।
भंग की तरंग में,
सबका मन डूबा हो।
चेहरे रंगीन हो,
लगते अजूबा हों।
भूल कर के दुश्मनी,
गले मिले प्यार से।
गिले शिकवे दूर हो,
होली की बहार से।
अबीर उड़े महफ़िल में,
गाल पे गुलाल हो।
भंग की तरंग हो,
होली का ऱंग हो।।3।।
– सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266