श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है होली / रंग पंचमी पर्व पर विशेष कविता  “*होली के रंग … *”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 118 ☆

☆ कविता – होली के रंग  

कभी भंग ऐसा चढता

अपनों को लगाए रंग।

गिले-शिकवे भूलकर

मिलता अपनों का संग।।

 

इंद्रधनुष के सात रंग,

बनाओ अपना भंग।   

लगाकर इनको सबके मांथ,

जीत लोअपनी जंग।।

 

बैंगनी रंग प्रीत का रंग,

धर्मपत्नी पर उछालो।।

साथ कभी ना छोड़ूं तेरा,

दिल से दिल मिला लो।।

 

रंग रंगों नीला मात-पिता,

चरणों में मिले आसमान।।

सिर झुका उनकी सदा,

रखना सदैव सम्मान ।।

 

आसमानी है रंग अनूठा,

साली जी को भाएं।।

जब भी जाए घर उनके,

सुंदर उपहार ले जाएं।।

 

हरा रंग में भंग मिला,

लगा दो अपनी भौजाई।।

घर आंगन महकता रहे,

उनकी खुशबु अगनाई।।

 

पीला रंग बिखराओं,

अपनी अपनी फुलवारी।

हंसते-हंसते सजा रहे,

बच्चों की नव क्यारी ।।

 

नारंगी रंग वीरों को भाएं,

बाटं दो सारे जवान।

उनके संरक्षण में सदा,

खिलता अपना हिंदुस्तान।।

 

भंग चढ़ाकर लाल रंग,

लगा दो अपने परिवार।

सारी उम्र टूटे नहीं,

बनाओ ऐसा घर द्वार।।

 

गुलाबी रंग हैं न्यारी,

होती सबसे प्यारी।

अबीर गुलाल लेकर देखों,

लगाई बारी-बारी।।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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