हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 12 ☆ मंज़र ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “मंज़र”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 12 ☆
कहाँ लगता है वक़्त
मंज़र के बदलने में?
शायद ये परिवर्तन
मौसम से भी बढ़कर होता है-
कम से कम
मौसम के आने और जाने का समय तो
लगभग सुनिश्चित है,
मंज़र तो
पलभर में भी बदल जाता है, है ना?
पहले बड़ा डर सा लगता था
मंज़र के बदल जाने पर-
घबरा जाती थी,
हाथ-पैर फूल जाते थे
और दिल तेज़ी से धड़कने लगता था;
पर अब धीरे-धीरे जान चुकी हूँ
कि खुदा मंज़र बनाता ही है
बदलने के लिए
और चाहता ही यह है
कि मंज़र चाहें कितने ही बदलें,
हम अपने जज़्बात,
अपने एहसास
और अपने खयालात में
संतुलन बनाकर रखें!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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