श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण रचना “वो क्या गए …”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 115 ☆
☆ वो क्या गए … ☆
गिले-शिकवे सब रफा-दफा कर दो
हमें ऐ मालिक वफ़ा अता कर दो
मैं मुश्किलों से दो चार हूँ कबसे
मिरे मुकद्दर का कुछ फैसला कर दो
हम सब हैं करोना की गिरफ्त में
कैद से अब हमें तुम रिहा कर दो
तभी सुन सकोगे आवाज दिल की
पहले दुनिया को अनसुना कर दो
वो क्या गए महफ़िलें उदास हुईं
बुला कर फिर दिल हरा-भरा कर दो
दूर कबसे हूँ करीब आ जाओ
या फिर फासला और बड़ा कर दो
“संतोष” मुद्दत से जख्मी है दिल
रहम अब मुझ पर मिरे खुदा कर दो
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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