डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘एक हैरतअंगेज़ हृदय-परिवर्तन’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 134 ☆

☆ व्यंग्य – एक हैरतअंगेज़ हृदय-परिवर्तन

रज्जू भाई ग्रेजुएशन करके दो साल से घर में बैठे हैं। काम धंधा कुछ नहीं है। घरवालों के ताने-तिश्ने सुनते रहते हैं। चुनाव के टाइम पर वे किसी नेता के हाथ प्रचार के लिए ‘बिक’ जाते हैं तो कुछ कमाई हो जाती है। निठल्ले होने के कारण शादी-ब्याह की संभावना भी धूमिल है।

कुछ दिन से रज्जू भाई नंदन भाई के संस्कृति-रक्षक दल में शामिल हो गए हैं। उन्हीं के साथ शहर में संस्कृति के लिए खतरा पैदा करने वाले वास्तविक या काल्पनिक कारणों को तलाशते रहते हैं। सरवेंटीज़ के डॉन क्विक्ज़ोट की तरह कहीं भी लाठी भाँजते टूट पड़ते हैं। रज्जू भाई को इन कामों में मज़ा भी आता है। अपने महत्व और अपनी ताकत का एहसास होता है।

रज्जू भाई का दल ‘वेलेंटाइन डे’ के सख्त खिलाफ है। उनकी नज़र में यह दिन देश की संस्कृति के लिए घातक है। उस दिन रज्जू भाई का दल छोटी-छोटी टोलियों में पार्कों और दूसरी मनोरंजन की जगहों पर सबेरे से घूमने लगता है। जहाँ भी जोड़े दिखते हैं वहीं कार्रवाई शुरू हो जाती है। पूरी बेइज़्ज़ती और धक्का-मुक्की के बाद ही जोड़े को मुक्ति मिलती है। जोड़े की जेब में कुछ पैसा हुआ तो टोली के सदस्यों की आमदनी भी हो जाती है, जिसे वे अपना सेवा-शुल्क मानते हैं। रज्जू भाई जोड़ों के चेहरे पर छाये आतंक को देखकर गर्व महसूस करते हैं।

एक बार जब नंदन भाई एक जोड़े को समझा रहे थे कि प्यार व्यार शादी के बाद यानी पत्नी से ही होना चाहिए, शादी से पहले का प्यार अपवित्र और गलत होता है, तो लड़का उनसे बहस करने लगा। उसने नंदन भाई को ग़ालिब का शेर सुनाया कि इश्क पर ज़ोर नहीं, वह ऐसी आतिश है जो लगाये न लगे और बुझाये न बने। इस शेर के जवाब में लड़के की खासी मरम्मत हो गयी और उसे समझा दिया गया कि आइन्दा वह ग़ालिब जैसे बरगलाने वाले शायरों को पढ़ना बन्द कर दे।

लेकिन हर ‘वेलेंटाइन डे’ के विरोध में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाले रज्जू भाई इस ‘वेलेंटाइन डे’ पर आश्चर्यजनक रूप से ग़ायब हैं। नंदन भाई ने एक लड़का उनके घर भेजा तो वे महात्मा बुद्ध की तरह चादर लपेटे प्रकट हुए। संतों की वाणी में बोले, ‘ये जोड़ों को पकड़ने और परेशान करने वाली नीति हमें अब घटिया लगती है। यह ठीक नहीं है। प्यार करना कोई गलत बात नहीं है। यह तो इस उमर में होता ही है। प्यार को रोकना प्रकृति के खिलाफ जाना है।’

लड़के ने लौटकर नंदन भाई तक रज्जू भाई के ऊँचे विचार पहुँचा दिये। नंदन भाई आश्चर्यचकित हुए। समझ में नहीं आया कि चेले का हृदय-परिवर्तन कैसे हो गया। तब रज्जू भाई के परम मित्र मनोहर ने रहस्योद्घाटन किया। बताया कि प्यार के घोर विरोधी रज्जू भाई दरअसल एक लड़की के प्यार में गिरफ्तार हो गये हैं। रोज सबेरे आठ बजे लड़कियों के हॉस्टल के सामने की चाय की दूकान पर पहुँच जाते हैं और दूकान की दीवार पर कुहनियाँ टेक कर दो-तीन घंटे तक मुँह उठाये, दीन-दुनिया से बेखबर, हॉस्टल के ऊपरी बरामदे की तरफ ताकते रहते हैं जहाँ उस लड़की की झलक पाने की संभावना रहती है। ग़रज़ यह कि इस प्यार नाम के ख़ब्त ने रज्जू भाई की अक्ल पर मोटा पर्दा डाल दिया है।

सुनकर पूरे समूह ने आह भरी कि रज्जू भाई जैसा उपयोगी और जाँबाज़ सदस्य अब उनके काम का नहीं रहा। नंदन भाई को लगा कि ज़रूर रज्जू भाई ग़ालिब जैसे किसी बहके हुए शायर के फेर में पड़ गये होंगे।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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