डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 82 – दोहे
चुनरी ,चुनरी ,ओढ़नी, मर्यादित मधु छंद।
लज्जा का सौंदर्य है मानो याज्ञिक गंध।।
चट्टानों के बीच में ,पत्थर अटका एक।
प्रकृति सुंदरी ने किया, पाषाणी अभिषेक।।
मदन महल को मिटाने, तत्पर हैं इंसान।
किंतु उसे साधे हुए, ग्रेनाइट चट्टान।।
ध्यान लगाए कौन यह, बैठा है चुपचाप।
साधु नहीं यह शिला है, सही मानिए आप।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति