हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य # 17 – जनसेवक की जुबानी ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  वर्तमान चुनावी परिप्रेक्ष्य में एक उलटबासी “जनसेवक की जुबानी…….। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 17 ☆

 

☆ जनसेवक की जुबानी……. ☆  

 

तुम डाल-डाल, हम पात-पात

हम हैं दूल्हे, तुम हो बरात।।

 

हम  पावन मंदिर के झंडे

तुम पार्टी ध्वजों के हो डंडे

हम शीतल चंदन की सुगंध

तुम  औघड़िये ताबीज गंडे।

तुम तो रातों के साये हो

हम प्रथम किरण की सुप्रभात

तुम डाल डाल…………….।।

 

हम हैं गंगा का पावन जल

तुम तो पोखर के पानी हो

हम नैतिकता के अनुगामी

तुम फितरत भरी कहानी हो।

हथियारों से तुम लेस रहे

हम सदा जोड़ते रहे हाथ

तुम डाल डाल…………….।।

 

हम  शांत  धीर गंभीर बने

तुम व्यग्र,विखंडित क्रोधी हो

हम संस्कारों के साथ चले

तुम  इनके  रहे विरोधी हो।

हम जन-जन की सेवा में रत

तुम करते रहते खुराफ़ात

तुम डाल डाल…………।।

 

हम व्यापक हैं आकाश सदृश

तुम  बंधे  हुए  सीमाओं  में

हम गीत अमरता के निर्मल

तुम बसे व्यंग्य कविताओं में।

तुमने  गोदाम  भरे  अपने

हम भूखों के बन गए भात

तुम डाल डाल……………।।

 

हम नेता मंत्री, हैं अफसर

तुम पिछलग्गू अनुयायी हो

हम नोट-वोट, कुर्सी धारी

पर्वत हैं हम, तुम खाई हो।

हम पाते रहते सदा जीत

तुम खाते रहते सदा मात

तुम डाल डाल हम पात पात।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014