डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘नेताजी का विकास-मंत्र’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 135 ☆

☆ व्यंग्य – नेताजी का विकास-मंत्र  

नेताजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलायी है। नेताजी नाराज़ हैं क्योंकि लोग खुलेआम कहते हैं कि सूबे का विकास नहीं हुआ। न बिजली है न पानी, न आवागमन के लिए सड़कें। न लड़कों को रोज़गार। कहते हैं सूबा उन्नीसवीं सदी में अटका है। विकास के नाम पर नेताजी के कुनबे का विकास हुआ है।

नेताजी का मानना है कि जनता एहसान- फरामोश है। इतना विकास करने के बाद भी आलोचना करती है। इसीलिए आलोचकों का मुँह बन्द करने के लिए नेता जी ने प्रेस को बुलाया है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेताजी के दोनों तरफ तीन तीन मंत्री बैठे हैं। संयोग से इन छः में से दो उनके भाई और तीन उनके बेटे हैं। छठवाँ मंत्री नेताजी का साला है।

कॉन्फ्रेंस में नेता जी फरमाते हैं, ‘मेरे कुछ विरोधियों ने ये बातें फैलायी हैं कि सूबे का विकास नहीं हुआ है। मैं आज इन्हीं बातों का जवाब देना चाहता हूँ। आप लोग मेरी बात को समझें और मेरी बातों को जनता तक पहुँचायें ताकि वे किसी के बहकावे में न आयें।’

‘अभी जो सूबे में पैंतीस मंत्री हैं उनमें से अट्ठाइस या तो मेरे खानदान के हैं या मेरे रिश्तेदार हैं। लोग इसे वंशवाद कहते हैं लेकिन मेरा कहना यह है कि मैंने अपने परिवार वालों को इसलिए मंत्री बनाया है ताकि प्रशासन पर मेरी पकड़ मजबूत रहे और साधनों का अपव्यय या भ्रष्टाचार न हो। जब विकास का सारा काम मेरे खानदान के पास होगा तो भ्रष्टाचार कौन करेगा? मेरी दो बहुएँ सांसद हैं। उन्हें भी इसीलिए संसद में भेजा है ताकि वे सूबे के हित में अपनी आवाज उठाती रहें और सूबे के विकास में केन्द्र सरकार की मदद मिलती रहे। तीसरे बेटे की शादी अगले साल होगी, तब संसद में हमारे सूबे का प्रतिनिधित्व और बढ़ेगा। आज अगर प्रशासन के हर महकमे में मेरे कुनबे के लोग बैठे हैं तो उसका फायदा यह है कि हम उनके कान पकड़कर सूबे का विकास करा सकते हैं। जनता के दुख दर्द को हमारे खानदान से बेहतर कौन समझ सकता है?’

‘जो लोग हम पर विकास न करने का आरोप लगाते हैं वे सब झूठे हैं। हमारे खानदान ने सूबे का जैसा विकास किया है वैसा देश में कहाँ मिलेगा? आज से पच्चीस साल पहले हमारे खानदान के पास क्या था? खाने के लाले थे। आज हमारे पास कई मॉल हैं, फाइव-स्टार होटलों की चेन है, चार मल्टीप्लेक्स हैं, छः फार्महाउस हैं, दो अखबार और दो टीवी चैनल हैं, सौ से ज्यादा बसें और इतने ही ट्रक हैं, जो दिन रात सूबे के विकास के लिए दौड़  रहे हैं।’

‘जो लोग सूबे में बिजली-पानी का रोना रोते हैं वे हमारे मॉलों और होटलों में आयें। सब चौबीस घंटे जगमगाते हैं। आधे घंटे को भी बिजली नहीं जाती। हर मॉल और होटल में शुद्ध मिनरल वाटर मिलता है। हमारे आलोचक पता नहीं कहाँ सूँघते फिरते हैं।’

‘हमने अपने होटलों, मॉलों, फार्महाउसों, बसों, ट्रकों में हजारों नौजवानों को रोजगार दिया है। पचीसों आदमी तो सिर्फ हमारे खानदान के सयानों के पैर दबाने और हुक्का भरने के लिए रखे गये हैं। इसके अलावा हमारे खानदान ने तीन इंटरनेशनल स्तर के स्कूल और इंजीनियरिंग कॉलेज, मैनेजमेंट कॉलेज और होटल मैनेजमेंट कॉलेज खोले हैं, दो सुपर स्पेशेलिटी अस्पताल खोले हैं जहाँ बड़े-बड़े डॉक्टर जनता की सेवा के लिए एक पाँव पर खड़े रहते हैं। स्कूलों का हर क्लासरूम ए.सी. है। यह सब किस लिए किया?  इसलिए कि हमारे नौजवान शिक्षित और स्वस्थ हों। शिक्षा और स्वास्थ्य ही न हो तो विकास कहाँ से होगा? हम लगातार नये विषयों के कॉलेज खोल रहे हैं। आप विषय बताइए, हमारे बेटे कल बोर्ड टाँग कर एडमीशन शुरू कर देंगे। विकास के काम में देरी हमें बर्दाश्त नहीं। हमारे बेटे-भतीजे दूसरे देशों के चक्कर लगाते रहते हैं ताकि सूबे के विकास के नये तरीके लाये जा सकें। हमारे लिए आराम हराम है। हम अपने भाइयों, बेटों, भतीजों, बहुओं के लिए आपका और जनता का आशीर्वाद चाहते हैं ताकि वे ऐसे ही सक्रिय और सूबे के विकास के प्रति समर्पित बने रहें।’

‘हमने अपने बेटों-भतीजों को समझा दिया है कि ज्यादा से ज्यादा विकास-पुरुष पैदा करें जो होश सँभालते ही विकास के यज्ञ में लग जाएँ। अभी सूबे में विकास की बहुत गुंजाइश है। हमें अपने सूबे को विकास के शिखर पर खड़ा करके आलोचकों को मुँहतोड़ जवाब देना है। जय हिन्द। भारत माता की जय।’

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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