श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय संस्मरण “चिंता और चिंतन… ”।)
☆ संस्मरण # 132 ☆ चिंता और चिंतन… ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
गांव का खपरैल स्कूल है, सभी बच्चे टाटपट्टी बिछा कर पढ़ने बैठते हैं। फर्श गोबर से बच्चे लीप लेते हैं, फिर सूख जाने पर टाट पट्टी बिछा के पढ़ने बैठ जाते हैं।
मास्टर जी छड़ी रखते हैं और टूटी कुर्सी में बैठ कर खैनी से तम्बाकू में चूना रगड़ रगड़ के नाक मे ऊंगली डालके छींक मारते हैं फिर फटे झोले से सलेट निकाल लेते हैं। बड़े पंडित जी जैसई पंहुचे सब बच्चे खड़े होकर पंडित जी को प्रणाम करते हैं। हम सब ये सब कुछ दूर से खड़े खड़े देख रहे हैं। पिता जी हाथ पकड़ के बड़े पंडित जी के सामने ले जाते हैं। पहली कक्षा में नाम लिखाने पिताजी हमें लाए हैं। अम्मा ने आते समय कहा उमर पांच साल बताना, सो हमने कह दिया पाँच साल…
बड़े पंडित जी कड़क स्वाभाव के हैं, पिता जी उनको दुर्गा पंडित जी कहते हैं। दुर्गा पंडित जी ने बोला पाँच साल में तो नाम नहीं लिखेंगे। फिर उन्होंने सिर के उपर से हाथ डालकर उल्टा कान पकड़ने को कहा। कान पकड़ में नहीं आया, तो कहने लगे हमारा उसूल है कि हम सात साल में ही नाम लिखते हैं, सो दो साल बढ़ा के नाम लिख दिया गया। पहले दिन स्कूल देर से पहुँचेतो घुटने टिका दिया गया, सलेट नहीं लाए तो गुड्डी तनवा दी , गुड्डी तने देर हुई तो नाक टपकी। मास्टर जी ने खैनी निकाल कर चैतन्य चूर्ण दबाई फिर छड़ी की और हमारी ओर देखा।
बस यहीं से जीवन अच्छे रास्ते पर चल पड़ा। अपने आप चली आयी नियमितता,अनुशासन की लहर, पढ़ने का जुनून, कुछ बन जाने की ललक। पहले दिन गांधी को पढ़ा, कई दिन बाद परसाई जी का “टार्च बेचने वाला” पढ़ा, फिर पढ़ते रहे और पढ़ते ही गए …
आज अखबार में पढ़ते हैं, मास्टर जी ने बच्चे का कान पकड़ लिया तो हंगामा हो गया… स्कूल का बालक मेडम को लेकर भाग गया… स्कूल के दो बच्चों के बीच झगड़े में छुरा चला … स्कूल के मास्टर ने ट्यूसन के दौरान बेटी की इज्जत लूटी … और न जाने क्या … क्या … !
© जय प्रकाश पाण्डेय
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