(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है श्री श्याम सुंदर दुबे जी की पुस्तक “कालः क्रीडति” की समीक्षा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 108 ☆
☆ “कालः क्रीडति” … श्री श्याम सुंदर दुबे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
किताब ..कालः क्रीडति
लेखक …श्याम सुंदर दुबे
यश पब्लिकेशनस
मूल्य ४९५ रु
हिन्दी में ललित निबंध लेखन बहुत अधिक नही है.श्याम सुंदर दुबे अग्रगण्य, वस्तुपरक ललित लेखन हेतु चर्चित हैं. उनके निबंधो में प्रवाह है, साथ ही भारतीय संस्कृति की विशद जानकारी, तथ्य, व संवेदन है. प्रस्तुत पुस्तक में कुल ३३ लेख हैं. पहला ही लेख ” एक प्रार्थना आकाश के लिये ” किसी एक कविता पर निबंध भी लिखा जा सकता है यह मैं इस लेख को पढ़कर ही समझ पाया, महाप्राण निराला की वीणा वादिनी वर दे, पर केंद्रित यह निबंध इस कविता की समीक्षा, विवेचना, व्याख्या विस्तार बहुत कुछ है. अन्य लेखो में पहला दिन मेरे आषाढ़ का,, सूखती नदी का शोक गीत, जल को मुक्त करो, तीर्थ भाव की खोज, सूखता हुआ भीतर का निर्झर, नीम स्तवन, सूखी डाल की वासंती संभावना सारे ही फुरसत में बड़े मनोयोग से पढ़ने समझने और आनंद लेने वाले निबंध हैं. प्रत्येक निबंध चमत्कृत करता है, अकेला पड़ता आदमी, इंद्र स्मरण और रंगो की माया, फूल ने वापस बुलाया है, कालः क्रीडति, फागुन की एक साम आदि निबंध स्वयं किसी लंबी कविता से कम नही हैं. हर शब्द चुन चुन कर सजाया गया है, इसलिये वह सम्यक प्रभाव पेदा करता है. किताब को १० में से ९ अंक देना ही पड़गा. जरूर पढ़िये, खरीदकर या पुस्तकालय से लेकर.
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈