आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत: करो बुवाई…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 88 ☆ 

☆ नवगीत: करो बुवाई… 

खेत गोड़कर

करो बुवाई…

*

ऊसर-बंजर जमीन कड़ी है.

मँहगाई जी-जाल बड़ी है.

सच मुश्किल की आई घड़ी है.

नहीं पीर की कोई जडी है.

अब कोशिश की

हो पहुनाई.

खेत गोड़कर

करो बुवाई…

*

उगा खरपतवार कंटीला.

महका महुआ मदिर नशीला.

हुआ भोथरा कोशिश-कीला.

श्रम से कर धरती को गीला.

मिलकर गले

हँसो सब भाई.

खेत गोड़कर

करो बुवाई…

*

मत अपनी धरती को भूलो.

जड़ें जमीन हों तो नभ छूलो.

स्नेह-‘सलिल’ ले-देकर फूलो.

पेंगें भर-भर झूला झूलो.

घर-घर चैती

पड़े सुनाई.

खेत गोड़कर

करो बुवाई…

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१०-४-२०१०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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