श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “महासंग्राम ।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 13 ☆

 

☆ महासंग्राम 

 

रावण की ओर से एक के बाद एक, महान राक्षस योद्धा युद्ध के मैदान में आ रहे थे। किमकारा राक्षस के अंत के बाद, सेना का संचालन रावण के पुत्र ‘देवान्तक’ के हाथ में दिया गया, कुछ लोगों का कहना था कि उसके नाम का अर्थ ‘देव’ ‘अंत’ ‘तक’ या देवो के अंत तक वह पराजित नहीं होगा है ।

लेकिन वास्तव में देवान्तक का अर्थ है, कि वह देवताओं के आने तक नहीं मरेगा । भगवान राम की सेना भगवानों और देवताओं के अवतारों से भरी थी। भगवान राम स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे, भगवान हनुमान भगवान शिव के अवतार थे, सुग्रीव सूर्य देवता के और अन्य कई अन्य देवताओं के।

देवान्तक अपने रथ में भगवान राम की ओर जा रहा था लेकिन भगवान हनुमान रास्ते में उनके रथ के आगे आ गए और उनका रथ रोक दिया। तब देवान्तक ने कहा, “हे ताकतवर हनुमान ! तुम मुझे नहीं जानते, मैं देवान्तक हूँ – रावण का पुत्र, और मुझे यह नाम भगवान ब्रह्मा से तब मिला जब मैंने तुम्हारे पिता, वायु के देवता को हराया था।तो ब्रह्मा ने मुझे यह नाम दिया है, इसका अर्थ है कि मैं सभी देवताओं के अंत तक जीवित रहूँगा। तो मेरे रास्ते से दूर जाओ अन्यथा मैं तुम्हें मार दूँगा”

भगवान हनुमान मुस्कुराते हैं और रावण के पुत्र देवान्तक को संस्कृत भाषा के कुछ बुनियादी सिद्धांत सिखाते है। भगवान हनुमान ने कहा, “हे रावण के महान योद्धा! क्या तुम अपने नाम का अर्थ भी नहीं जानते हो। यहाँ तक ​​कि तुम्हारे पिता रावण, जो स्वयं को संस्कृत भाषा का ज्ञानी बोलता है, उसने भी तुम्हें यह नहीं बताया है कि संस्कृत भाषा के नियम के अनुसार तुम्हारा नाम देवान्तक है, इसमें ‘ना’ धातु शामिल है, जो कुछ समय अवधि को परिभाषित करता है, और तुम्हारी स्थिति में वह समय की अवधि तब तक है जब तक देवता तुम्हारे साथ लड़ने नहीं आते हैं और तुम्हें शायद नहीं पता की हमारी सेना देवताओं के अवतारों से भरी है। तुमने कभी मेरे पिता को हराया होगा, तो अब यह मेरा समय की मैं तुमसे अपने पिता की हार का बदला लूँ तो अब मैं तुम्हें मारने जा रहा हूँ।”

भगवान हनुमान पूर्ण गति से देवान्तक के रथ की ओर दौड़ते हैं और उसके रथ को अपने शरीर की मजबूत टक्कर से नष्ट कर देते हैं। फिर देवान्तक को अपनी बाहों में उठाते हैं और पृथ्वी पर वापस पटक देते हैं। और इस तरह देवान्तक के जीवन का अंत हो जाता है ।

 

© आशीष कुमार  

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Ashutosh Gupta

Very Good, Never Heard this story and i think it was also not shown in Famous TV Serial Ramayan, I think Any of the Producer should invest money on making such stories as a short web series… It will surely increase their revenue and also will be helpfull in spreading Indian Culture in the world…